सोमवार को उत्तराखंड कांग्रेस की कद्दावर नेता डॉ. इंदिरा हृदयेश रानीबाग के चित्रशिला घाट पर पंचतत्व में विलीन हो गईं और इस दौरान उनके अंतिम दर्शन के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी. इससे पहले सोमवार की सुबह आज दर्शनों के लिए उनका पार्थिव शरीर रखा गया.
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सहित भाजपा और कांग्रेस के कई नेता उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि देने पहुंचे. जिसके बाद उनकी अंतिम यात्रा निकाली गई और चित्रशिला घाट पहुंचकर स्व. इंदिरा हृदयेश का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया.
उत्तराखंड विधानसभा में विपक्ष की नेता इंदिरा हृदयेश का रविवार को नई दिल्ली में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था. 80 वर्षीय वरिष्ठ कांग्रेस नेता पार्टी बैठक में शामिल होने के लिए दिल्ली गई थी और वह उत्तराखंड सदन में ठहरी हुई थीं. 1960 के दशक में पौड़ी के एक अशासकीय विद्यालय में अध्यापिका बनीं. इसी विद्यालय में हृदयेश कुमार भी कार्यरत थे, जिनसे बाद में उनका विवाह हुआ.
तब गढ़वाल के कद्दावर कांग्रेस नेता हेमवती नंदन बहुगुणा के संपर्क में आने पर उनका राजनीति में रुझान हुआ और पहली बार मात्र 32 वर्ष की आयु में वह गढ़वाल कुमाऊं शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से उतर प्रदेश विधान परिषद की सदस्य बनीं. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
7 अप्रैल 1941 को जन्मी इंदिरा हृदयेश 1974 में उत्तर प्रदेश विधान परिषद के लिए पहली बार चुनी गईं. इसके बाद 1986, 1992 और 1998 में भी अविभाजित उत्तर प्रदेश विधान परिषद के लिए चुनी गईं. 2000 में उत्तराखंड के अलग राज्य बनने पर विधानसभा में प्रतिपक्ष की नेता बनीं. 2002 में उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में हल्द्वानी से जीतीं.
तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी की सरकार में उनका इतना बोलबाला था कि उन्हें सुपर मुख्यमंत्री कहा जाता था. 2007 से 2012 के दौरान वह चुनाव हार गईं.
2012 में फिर उन्होंने विधानसभा चुनाव जीता और विजय बहुगुणा व हरीश रावत सरकार में मंत्री बनीं. 2017 के चुनाव में वह हल्द्वानी से जीती और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाई गईं.