भाजपा हाईकमान अगले साल उत्तराखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव तीरथ सिंह के नेतृत्व में लड़ने के ‘मूड’ में नहीं है. इसके साथ ही उत्तराखंड के दिग्गज भाजपाई भी इस पक्ष में नहीं हैं. चर्चा यह भी है कि दो-तीन दिन में पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व कोई बड़ा फैसला ले सकता है.
यह बड़ा फैसला क्या है, इस पर कोई भी खुलकर नहीं बोल रहा. यदि उपचुनाव की स्थिति नहीं बनी तो सरकार में फिर से नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है. बता दें कि ‘दिल्ली में इस बार तीरथ सिंह रावत राज्य की सत्ता पर काबिज रहेंगे या हटाए जाएंगे, पार्टी आलाकमान ने रणनीति बना ली गई है’. घोषणा करना बाकी रह गया है. रावत ने इसी साल 10 मार्च को मुख्यमंत्री की कमान संभाली थी. ऐसे में उन्हें 10 सितंबर से पहले विधायक बनना होगा.
क्योंकि इसकी छह महीने की अवधि समाप्त हो रही है और यह भाजपा नेतृत्व को ‘परेशान’ किए हुए है. दूसरी ओर कई दिनों से चर्चा चली आ रही है कि विधायक के निधन के बाद राज्य की खाली हुई ‘गंगोत्री’ सीट से उपचुनाव तीरथ सिंह रावत लड़ सकते हैं.
लेकिन इस सीट से तीरथ उप चुनाव लड़ने के लिए अपने आप को ‘तैयार’ नहीं कर पा रहे हैं. यदि उपचुनाव होता है तो मुख्यमंत्री गंगोत्री सीट से शायद ही चुनाव लड़ें, क्योंकि ‘देवस्थानम बोर्ड’ को लेकर वहां तीर्थ पुरोहित ‘नाराज’ चल रहे हैं.
दूसरी ओर ‘चुनाव आयोग के नए नियम भी तीरथ के लिए मुश्किल बढ़ा रहे हैं’. अंतिम समय में चुनाव से बचने के लिए भाजपा नया मुख्यमंत्री नियुक्त कर सकती है. ऐसे में पार्टी के सामने अन्य विकल्पों को देखते हुए कई उम्मीदवारों ने हाईकमान के सामने खुद को राष्ट्रीय राजधानी में ‘तैनात’ कर लिया है.
यह अटकलें भी लगाई गईं कि यदि उपचुनाव की स्थिति नहीं बनी तो सरकार में फिर से ‘नेतृत्व परिवर्तन’ हो सकता है. दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी पिछले दिनों से अपनी सियासी सक्रियता अचानक तेज कर दी है.