नागरिकता कानून में संशोधन के खिलाफ हुए प्रदर्शन में शामिल हुए लोगों की सम्पत्ति जब्त करने वाली सभी नोटिस को यूपी सरकार ने वापस ले लिया है. सुप्रीम कोर्ट को जानकारी देते हुए सरकार की तरफ से कहा गया कि 14 और 15 फरवरी को सभी 274 नोटिस रद्द कर दी गयी हैं.
हालांकि यूपी सरकार ने नए कानून के तहत नोटिस जारी करने की मांग की है. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि सरकार की कार्रवाई उसके आदेश के खिलाफ है. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश देते हुए प्रदर्शकारियों की अटैच की गई प्रॉपर्टी और पैसे को वापस करने को कहा है.
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के सामने एक याचिका दायर की गई थी. जिसमें यूपी के जिला प्रशासन द्वारा जारी नोटिस को रद्द करने की मांग की गई थी. ये नोटिस नागरिकता कानून में संशोधन के खिलाफ दिसम्बर 2019 में हुए प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को पहुंचे नुकसान की भरपाई के लिए भेजे गए थे.
19 दिसम्बर 2019 को लखनऊ और आसपास के हिस्सों में हुए हिंसक प्रदर्शन में कई लोगों की जान चली गयी थी वहीं सार्वजनिक और निजी संपत्ति के साथ ही साथ सरकारी बसों, ओबी वैन, मोटरसाईकल को फूंक दिया गया था.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की वकील नीलोफर खान ने कहा कि रिक्शा चालकों, फल विक्रेताओं ने अपने ठेलों को बेच कर भुगतान किया है. दरअसल, 2019 में लागू नियम के मुताबिक किसी से भी सरकारी या निजी संपत्ति बर्बाद पर हर्जाना लेने के लिए एक तय प्रक्रिया है.
उस प्रक्रिया के तहत हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज ये तय करते है की किससे कितना हर्जाना लेना है. लेकिन उत्तर प्रदेश में इस नियम का पालन नही हुआ था और सरकार ने डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को संपत्ति ज़ब्त करने और हर्जाना लेने का अधिकार दे दिया था.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक हिंसा के दौरान किसी भी तरह की संपत्ति को पहुंचे नुकसान की भरपाई के लिए अगर राज्य में कोई विशेष कानून नहीं है. ऐसी स्थिति में हाईकोर्ट बड़े पैमाने पर सार्वजनिक संपत्ति को पहुंचे नुकसान की घटनाओं का स्वतः संज्ञान लेकर जांच कराएगी.
दिशानिर्देश के मुताबिक हाईकोर्ट के मौजूदा या सेवानिवृत्त जज को ‘क्लेम कमिश्नर’ बनाया जाएगा. इसके बाद जब नुकसान का आंकलन पूरा हो जाएगा तो अपराधियों से वसूली की जाएगी.
लेकिन यूपी सरकार ने भरपाई के कानून की गैरमौजूदगी में तय नियमों का पालन न करके जिला प्रशासन को वसूली का अधिकार दे दिया. इसी के खिलाफ याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी.
हालांकि मार्च 2021 में उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘यूपी सार्वजनिक और निजी संपत्ति 2021 का कानून पास किया जिसमें एक लाख तक के जुर्माने और 1 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है. यूपी सरकार की वकील गरिमा प्रसाद ने इसी नए कानून के तहत नई नोटिस भेजे जाने की मांग सुप्रीम कोर्ट से की थी. जिसे कोर्ट ने मान लिया है.