वाह मंत्रीजी ! मंत्री ने भाई की असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर ‘गरीब कोटे’ से करा दी जॉइनिंग, सीएम योगी फिर घिरे

मंत्रीजी यह सोचते हैं हम कुछ भी करा लेंगे जनता को भनक नहीं लगेगी. लेकिन अब ऐसा दौर नहीं है कि ये ‘माननीय’ नियमों के खिलाफ कुछ भी करा लें और वह मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक ‘एक्सपोज’ न हो. हालांकि इन मंत्री पर अभी सवाल उठ रहे हैं, साक्ष्य नहीं मिले हैं. मामला उत्तर प्रदेश शिक्षा विभाग से जुड़ा हुआ है. ‘एक बार फिर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए उन्हीं के मंत्री ने मुसीबत बढ़ा दी है’.

बात को आगे बढ़ाने से पहले बता दे कि उत्तर प्रदेश में हुए पंचायत चुनाव को लेकर पहले से ही शिक्षकों में जबरदस्त नाराजगी है, क्योंकि इन चुनाव में डेढ़ हजार से अधिक शिक्षकों ने ड्यूटी के दौरान कोरोना महामारी की वजह से अपनी जान गंवा दी थी. जिसकी वजह से यूपी का शिक्षक संगठन योगी सरकार से मृतक शिक्षकों के परिजनों को ‘मुआवजा’ न मिलने से नाराज है. एक बार फिर प्रदेश में बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी ने अपनी सरकार की ‘फजीहत’ करा दी है.

शिक्षा मंत्री द्विवेदी ने अपने भाई अरुण द्विवेदी को ‘गरीब कोटे’ (आर्थिक रूप से कमजोर) में दिखाकर सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्त दिला दी है. दिवेदी सिद्धार्थनगर जिले के ‘इटवा’ विधानसभा क्षेत्र के विधायक हैं. जैसे ही इसकी खबर सोशल मीडिया पर वायरल हुई विपक्ष एक बार फिर योगी सरकार को घेरने का मौका मिल गया. बता दें कि चयन के बाद अरुण द्विवेदी ने असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर शुक्रवार को ही सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में ज्वाइन कर लिया.

जिसके बाद सवाल उठ रहे हैं कि ‘मंत्री सतीश द्विवेदी ने नियुक्ति में अपनी पावर का इस्तेमाल किया है, इतना ही नहीं, मंत्री के भाई होने के बावजूद आर्थिक रूप से कमजोर होने का प्रमाण पत्र भी कई सवाल उठाता है. हालंकि कुलपति प्रोफेसर सुरेंद्र दुबे के मुताबिक उनके पास नियुक्ति प्रक्रिया के सारे साक्ष्य मौजूद हैं. प्रो. सुरेंद्र दुबे का कहना है कि मनोविज्ञान में करीब डेढ़ सौ आवेदन आए थे. मेरिट के आधार पर 10 आवेदकों का चयन किया गया.

इसमें अरुण द्विवेदी का भी नाम था. आवेदकों का जब इंटरव्यू हुआ तो अरुण दूसरे स्थान पर रहे. इंटरव्यू, एकेडमिक व अन्य अंकों को जोड़ने पर अरुण पहले स्थान पर आ गए. इस वजह से इनका चयन हुआ है. कुलपति का कहना है कि यदि कोई एजेंसी जांच भी करना चाहती है तो वह उसके लिए तैयार है. लेकिन सोशल मीडिया पर भी कुलपति पर सवाल उठाए जा रहे हैं.

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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