देश स्तब्ध है. आज वाकई हमसे कोई बिछड़ गया. एक ‘सितारा’ हमें छोड़कर आसमान में चला गया. देशवासी शोक में है, पूरी फिल्म इंडस्ट्रीज ठहर गई है. भारतीय सिनेमा का एक ‘युग’ आज खत्म हो गया. अभिनय जगत की एक बड़ी यूनिवर्सिटी भी ‘खामोश’ हो गई. इन अभिनय सम्राट के नाम से ही एक्टिंग के प्रति ‘जुनून’ आ जाता था. वे ‘ट्रेजडी किंग के नाम से मशहूर हुए. बॉलीवुड में सैकड़ों कलाकार उनकी एक्टिंग की ‘कॉपी’ (नकल) किया करते थे. इसके साथ कई कलाकारोंं ने उनसे कुछ न कुछ ‘उधार’ लिया. ‘सिनेमा के इतिहास में उनका नाम हमेशा स्वर्णिम अक्षरों में याद किया जाएगा’. देश-विदेश के लाखों-करोड़ों प्रशंसकों के ‘दिल’ बस गए.
जी हां हम बात कर रहे हैं बॉलीवुड के अभिनय सम्राट पहले सुपरस्टार महान अभिनेता दिलीप कुमार की. बुधवार सुबह 7:30 बजे मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में 98 वर्षीय अभिनय सम्राट दिलीप कुमार ने दुनिया को अलविदा कह दिया. दिलीप कुमार को सांस लेने में दिक्कत के चलते एक बार फिर 29 जून को अस्पताल में भर्ती कराया गया था. वे काफी लंबे समय से बीमार चल रहे थे. ‘अपने चहेते अभिनेता के चले जाने पर बॉलीवुड के साथ देशवासियों, लाखों प्रशंसकों और राजनीतिक दलों के तमाम नेताओं ने दिलीप कुमार को श्रद्धांजलि दी’. इसके साथ सोशल मीडिया पर लोग सुबह से ही अपने सुपरस्टार को याद कर रहे हैं.
बता दें कि बढ़ती उम्र के चलते कुछ सालों से दिग्गज अभिनेता दिलीप साहब बीमार चल रहे थे, जिसकी वजह से उन्हें कई बार मुंबई के अस्पतालों में भर्ती करवाना पड़ा. इस दौरान देशवासी उनके स्वस्थ होने की ‘दुआ’ भी करते रहे. ‘हर बार वे स्वस्थ होकर घर आ जाते थे, लेकिन इस बार नहीं लौट पाए’… देश की आजादी के बाद हिंदी सिनेमा को बढ़ाने में दिलीप कुमार का सबसे बड़ा ‘योगदान’ था. ‘वह एक ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने अपनी एक ‘आम जनमानस’ में अभिनय के बल पर अपनी एक खास जगह बनाई जो आखिर समय तक भी लोगों के दिलों में बनी रही’. देवदास, आन, आजाद, मधुमति, नया दौर, राम और श्याम, कोहिनूर, मुगल-ए-आजम, गंगा जमुना, लीडर, पैगाम, गोपी, बैराग आदि फिल्मों में उनकी ‘संवाद अदायगी’ हमेशा याद रखी जाएगी.
‘फिल्मी पर्दे पर दिलीप कुमार के साथ दिग्गज अभिनेता राजकुमार, अमिताभ बच्चन का टकराव बॉलीवुड के साथ सिनेमा प्रशंसकों में अमिट छाप छोड़ गया’. दिलीप कुमार ने राजकुमार के साथ फिल्म ‘पैगाम’ और ‘सौदागर’ और अमिताभ बच्चन के साथ ‘शक्ति’ में निभाए गए अदाकारी को दर्शक अभी भी भूल नहीं पाए हैं. आज सुबह से ही तमाम न्यूज चैनलों में उनके फिल्मों के संवादों की क्लिपिंग दिखाई जा रही है. भारतीय सिनेमा दिलीप कुमार के बिना पूरा नहीं होता है. एक्टिंग की हर ‘विधा’ को दिलीप कुमार ने काफी पीछे छोड़ दिया. अमिताभ बच्चन से लेकर शाहरुख खान तक दिलीप कुमार के ‘आदर्श’ बने. वह वाकई ‘सर्वकालिक महान अभिनेता’ थे. हिंदी सिनेमा हो या अन्य भाषा, कोई कलाकार दिलीप कुमार से अभिनय में आगे नहीं जा सका.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी समेत तमाम नेताओं के साथ सुपरस्टार अमिताभ, बच्चन शाहरुख खान ने दिलीप कुमार को श्रद्धांजलि दी है. दिलीप कुमार के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक प्रकट किया है. ट्वीट करते हुए कहा कि दिलीप कुमार जी को एक सिनेमाई लीजेंड के रूप में याद किया जाएगा. उन्हें असामान्य प्रतिभा मिली थी, जिसकी वजह से उन्होंने कई पीढ़ियों के दर्शकों को रोमांचित किया.
उनका जाना हमारी सांस्कृतिक दुनिया के लिए एक क्षति है. उनके परिवार, दोस्तों और असंख्य प्रशंसकों के प्रति संवेदना. पीएम मोदी ने कुमार की पत्नी सायरा बानो से फोन पर बात की.
11 दिसंबर 1922 को दिलीप कुमार का जन्म पेशावर में हुआ था
दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसंबर 1922 को पेशावर पाकिस्तान में हुआ था. उनका असली नाम युसूफ सरवर खान था. उनके 12 भाई-बहन थे और वे तीसरे नंबर के थे. उनके पिता 1930 के दशक में मुंबई आ गए थे, यहां उन्होंने अपना फलों का कारोबार स्थापित कर लिया. वहीं युसूफ खालसा कॉलेस से आर्ट्स में ग्रेजुएशन कर रहे थे. पढ़ाई के बाद युसूफ नौकरी करने निकले तो उन्होंने आर्मी कैंटीन में असिस्टेंट मैनेजर की नौकरी की.
दिलचस्प यह कि उनके परिवार में फिल्म या संगीत से किसी का दूर-दूर तक कोई नाता नहीं रहा था. यह बात सन 1944 की है. उन दिनों बॉम्बे टॉकीज स्टूडियो का अपना ‘जलवा’ हुआ करता था. बॉम्बे टॉकीज को एक नए हीरो की ‘तलाश’ थी. स्टूडियो की मालकिन देविका रानी एक दिन वे बाजार में खरीदारी के लिए गईं. उनका इरादा खरीदारी का ही था लेकिन दिमाग में अपने नए हीरो की तलाश थी. खरीदारी के दौरान वे एक फलों की दुकान पर गईं.
उस दुकान पर मौजूद युवा उनकी पारखी नजरों को भा गया. इसे किस्मत कहें या इत्तेफाक वह युवा सिर्फ इसलिए दुकान में था कि उसके पिता बीमार थे. देविका को उसका चेहरा एक्टिंग के माकूल लगा और आंखों में कशिश दिखी जो किसी सुपरस्टार के लिए जरूरी चीजें थीं. देविका ने उन्हें अपना विजिटिंग कार्ड दिया और कहा कि कभी स्टूडियो में आकर मिलना. युसूफ खान से अपना नाम दिलीप कुमार रख लिया. युसूफ खान दूसरे दिन देविका रानी से मिलने के लिए स्टूडियो पहुंच गए. युसूफ काे कुछ टेस्ट के बाद अप्रेंटिस पोस्ट के लिए रख लिया गया. इसके बाद देविका ने अपने इस हीरो पर फोकस किया.
अब वे उन्हें ऐसा टच देना चाहती थीं कि वे सिल्वर स्क्रीन पर छा जाए. इस तरह युसूफ खान बॉम्बे टॉकीज का हिस्सा बन चुके थे. ‘युसूफ का दिलीप कुमार बनने तक का सफर बड़ा रोचक था’. लेखक अशोक राज ने अपनी किताब में ‘हीरो’ में लिखा है कि हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार भगवती चरण वर्मा ने उन्होंने दिलीप नाम दिया था जबकि माना जाता है कि कुमार उन्हें उस समय के उभरते सितारे अशोक कुमार से मिला था.
वहीं कुछ लोगों का मानना है कि दिलीप कुमार नाम देविका रानी ने दिया था. यहां हम आपको बता दें कि देविका रानी ने 1944 में ‘ज्वार भाटा’ फिल्म से दिलीप कुमार को लॉन्च किया था. फिल्म की हीरोइन भी नई थी. इसमें दिलीप कुमार ने एक ‘नौटंकी’ कलाकार का रोल निभाया था. लेकिन फिल्म चल नहीं सकी और सबको लगा कि इस हीरो में दम नहीं है. लेकिन तीन साल की मेहनत के बाद वह समय भी आया जब पहली फिल्म ने क्लिक किया.
1947 की फिल्म ‘जुगनू’ ने उनकी किस्मत बदल दी और फिर उसके बाद उन्हें कभी पीछे मुड़कर देखने का मौका नहीं मिला. ‘महज 25 वर्ष की उम्र में दिलीप कुमार देश के नंबर वन अभिनेता के रूप में स्थापित हो गए थे’. राजकपूर और देव आनंद के आने के बाद ‘दिलीप-राज-देव’ की प्रसिद्ध त्रिमूर्ति बन गई थी. यह तीनों ही देश के विभाजन के बाद पकिस्तान से भारत आए थे. ‘अभिनय सम्राट दिलीप कुमार ने अभिनय की कोई बुनियादी ट्रेनिंग कभी नहीं ली, वे एक स्वाभाविक अभिनेता रहे’.
इन फिल्मों में अभिनेता दिलीप कुमार ने एक्टिंग की गढ़ी नई परिभाषा
50 के दशक में हिंदी सिनेमा में दिलीप कुमार का जबरदस्त नाम चल गया. ‘मेला’, ‘शहीद’, ‘अंदाज़’, ‘आन’, ‘देवदास’, ‘नया दौर’, ‘मधुमती’, ‘यहूदी’, ‘पैगाम’, ‘मुगल-ए-आजम’, ‘गंगा-जमना’, ‘लीडर’ और ‘राम और श्याम’ जैसी फ़िल्मों के नायक दिलीप कुमार लाखों युवा दर्शकों के दिलों की धड़कन बन गए थे.
एक नाकाम प्रेमी के रूप में उन्होंने विशेष ख्याति पाई, लेकिन यह भी सिद्ध किया कि हास्य भूमिकाओं में भी वे किसी से कम नहीं हैं. वो ‘ट्रेजेडी किंग’ कहलाए लेकिन, वो एक ‘हरफनमौला’ अभिनेता थे. दिलीप कुमार ने अपने करियर में मात्र 60 फिल्में की हैं लेकिन सभी में अपने अभिनय का लोहा मनवाया. उसके बाद दिलीप कुमार ने 80 के दशक में कई फिल्में सुपरहिट दी और उनकी भूमिका भी जबरदस्त रही. जिसमें 1981 में आई क्रांति, 1982 में विधाता, कर्मा, इज्जतदार, सौदागर, जैसी फिल्में शामिल है.
आखिरी फिल्म दिलीप कुमार की 1998 में किला रिलीज हुई थी. दिलीप कुमार ने भारतीय सिनेमा के 6 दशक तक काम किया. इन्हें सबसे पहला फिल्म फेयर अवार्ड मिला था. 1954 से लेकर 1983 तक दिलीप कुमार को 8 फिल्म फेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार से सम्मानित किया गया. जो दाग, आजाद, देवदास, नया दौर, कोहिनूर, लीडर, राम और श्याम, शक्ति फिल्मों के लिए मिला.
इसके अलावा दिलीप कुमार को 1995 में दादा साहेब फाल्के अवार्ड 1998 में पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज से सम्मानित किया गया है. 2014 में अभिनय के क्षेत्र में उनको किशोर कुमार सम्मान से भी नवाजा गया है. इसके अलावा दिलीप कुमार 2000 में ‘संसद सदस्य’ भी बने थे.
ट्रेजरी किंग की निजी जिंदगी भी कम उतार-चढ़ाव वाली नहीं रही
दिलीप कुमार और सायरा बानो की शादी की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. सायरा बानो स्वयं लोकप्रिय नायिका रही हैं और अपनी जंगली, अप्रैल फूल, पड़ोसन, झुक गया आसमान, पूरब और पश्चिम, विक्टोरिया नंबर 203, आदमी और इंसान तथा जमीर जैसी बहुत सी फिल्मों एक्ट्रेस के रूप में अपनी अलग पहचान बनाई. तब सायरा का दिल राजेंद्र कुमार पर फिदा था, वे तीन बच्चों वाले शादीशुदा व्यक्ति थे. सायरा की मां नसीम को जब यह भनक लगी, तो उन्हें अपनी बेटी की नादानी पर बेहद गुस्सा आया.
नसीम ने अपने पड़ोसी दिलीप कुमार की मदद ली और उनसे कहा कि सायरा को वो समझाएं कि वो राजेंद्र कुमार से अपना मोह भंग करे. दिलीप कुमार ने बड़े ही बेमन से यह काम किया क्योंकि वे सायरा के बारे में ज्यादा जानते भी नहीं थे. लेकिन समय को कुछ और ही मंजूर था. 11 अक्टूबर 1966 को 25 साल की उम्र में सायरा ने 44 साल के दिलीप कुमार से शादी कर ली. दूल्हा बने दिलीप कुमार की घोड़ी की लगाम पृथ्वीराज कपूर ने थामी थी और अगल-बगल राज कपूर और देव आनंद डांस कर रहे थे.
उसके बाद अभिनेता दिलीप और सायरा बानो का आखिरी समय तक साथ बना रहा. दिलीप कुमार पिछले काफी समय से बीमार होने की वजह से फिल्मों से दूर थे. ऐसे में उनकी पत्नी सायरा ही उनका पूरा ख्याल रखती थीं. उम्र के इस पड़ाव पर अल्जाइमर और अन्य बीमारियों से लड़ रहे दिलीप की सायरा तीमारदारी में लगी रहीं. ‘दिलीप कुमार की जगह अब कोई भी नहीं ले सकेगा.
उनका अभिनय और संवाद अदायगी लाखों-करोड़ों लोगों के दिलों में हमेशा जीवित रहेगी’. हमारे न्यूज पोर्टल की ओर से महान अभिनेता को विनम्र श्रद्धांजलि.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार