प्राचीन ऋषियों में महर्षि याज्ञवल्क्य का जन्म फाल्गुन कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को मिथिला नगरी के निवासी ब्रह्मरथ और सुनंदा के घर हुआ था. श्रीमद्भागवत के मुताबिक, इनका जन्म देवराज के पुत्र के रूप में हुआ था. वही सात वर्षों में याज्ञवल्क्य ने अपने मामा वैशंपायन से शिक्षा ग्रहण कर वेद की सभी ऋचाएं कंठस्थ कर ली थी.
बाद में इन्होंने उद्धालक आरुणिक ऋषि से अध्यात्म तो ऋषि हिरण्यनाम से योगशास्त्र की शिक्षा प्राप्त की थी. इन्हीं के जन्म दिवस को याज्ञवल्क्य जयंती जयंती के रूप में प्रतिवर्ष मनाया जाता है.
इस वर्ष 18 मार्च 2021 को याज्ञवल्क्य जयंती मनाई जाएगी याज्ञवल्क्य जी को पुराणों में ब्रह्मा जी का अवतार माना गया है इस कारण इन्हें ब्रह्मर्षि कहा जाता है और श्रीमद्भागवत में उन्हें देवरात के पुत्र कहा गया है. भगवान सूर्य की प्रत्यक्ष कृपा से इन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई.
याज्ञवल्क्य जीवन वर्णन-:
याज्ञवल्क्य ऋषि वैशम्पायन के शिष्य थे तथा राजा जनक के कार्यों में एक सलाहकार एवं गुरू रूप में उनके साथ रहे याज्ञवल्क्य, को योगीश्वर याज्ञवल्क्य के नाम से भी जाना गया है. मैत्रेयी और गार्गी इनकी पत्नियाँ थी. वैदिक मन्त्र द्रष्टा तथा उपदेष्टा आचार्यों में ऋषि याज्ञवल्क्य का प्रमुख स्थान रहा है. याज्ञवल्क्य महर्षि वैशम्पायन के शिष्य थे.
एक बार गुरु वैशम्पायन जी से इनका विवाद हो जाता है जिस कारण गुरू उनसे अप्रसन्न हो उन्हें अपने शिष्य होने के पद से तथा अपने द्वारा दिए गए ज्ञान को वापस लौटाने के लिए कहते हैं. गुरू की आज्ञा सुनकर याज्ञवल्क्य ने अपने सारी विद्या को उगल दिया जिसे, वैशंपायन के अन्य शिष्यों ने तीतर बनकर चुग लिया यजुर्वेद की यही शाखा , तैत्तिरीय शाखा के नाम से विख्यात हुई थी.
ब्रह्मर्षि याज्ञवल्क्य जी गुरू का ज्ञान देकर ज्ञान रहित हो जाते हैं इसलिए पुन: ज्ञान की प्राप्ति हेतु वह सूर्य देव की उपासना करने लगते हैं तथा उनसे ज्ञान प्रदान करने की प्रार्थना करते हैं. सूर्यदेव, याज्ञवल्क्य की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन देते हैं तथा वरदान स्वरूप यजुर्वेद के गूढ़ मंत्रों का ज्ञान देते हैं.
सूर्य देव के वरदान स्वरूप ऋषि याज्ञवल्क्य शुक्ल यजुर्वेद या वाजसनेयी संहिता के आचार्य बनते हैं और
वाजसनेय के नाम से जाने जाते हैं. मध्य दिन के समय ज्ञान प्राप्त होने से ‘माध्यन्दिन’ शाखा का उदय हुआ एवं शुक्ल यजुर्वेद संहिता के मुख्य मन्त्र द्रष्टा ऋषि याज्ञवल्क्य हुए इस प्रकार शुक्ल यजुर्वेद हमें ऋर्षि याज्ञवल्क्य जी द्वारा प्राप्त हुआ है.
ब्रह्मर्षि याज्ञवल्क्य द्वारा रचित ग्रंथ-:
याज्ञवल्क्य जी द्वारा रचित ग्रंथों की श्रेणी में सर्वप्रथम ग्रंथ शुक्ल यजुर्वेद संहिता प्राप्त होता है इसके 40 अध्यायों में पद्यात्मक मंत्र तथा गद्यात्मक यजुर्वेद भाग का संग्रह है अधिकांश लोग इस वेद शाखा से ही संबद्ध हैं.
ऋषि याज्ञवल्क्य जी द्वारा रचित अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथ शतपथ ब्राह्मण की रचना है. इस ग्रंथ में दर्श, पौर्णमास इष्टियों का वर्णन है, पशुबंध, सोमयज्ञों का वर्णन है,
बृहदारणयकोपनिषद भी महर्षि याज्ञवल्क्य द्वारा ही हमें प्राप्त हुआ है. याज्ञवल्क्य, वैशंपायन, शाकटायन आदि की परंपरा में हुए, याज्ञवल्क्य स्मृति प्रसिद्ध है, मनुस्मृति के उपरांत इन्हीं की स्मृति का महत्व है. इन ग्रंथों के द्वारा याज्ञवल्क्य का महान व्यक्तित्व प्रतिष्ठित होता है, ऋषि याज्ञवल्क्य एक तेजस्वी युग दार्शनिक थे.
याज्ञवल्क्य जयंती महत्व
ब्रह्मर्षि याज्ञवल्क्य जयंती के अवसर पर पूरे भारतवर्ष में प्रार्थना, पूजा एवं सभाओं क आयोजन किया जाता है. साथ ही में उनके द्वारा रचित ग्रंथों का पाठ एवं वर्णन होता है, इनके समस्त गुणों एवं उपदेशों को अपनाकर सभी अपना मार्ग दर्शन पाते हैं. इनके द्वारा रचित ग्रंथों में उनके विज्ञ का बोध होता है वैदिक साहित्य में शुक्ल यजुर्वेद की वाजसनेयी शाखा के वह दृष्टा हुए.