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World Theatre Day 2021: आज मनाया जा रहा है अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच दिवस, जानें इसका इतिहास

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रंगमंच

यूँ तो ये दुनिया ही एक रंगमंच है और हम सब इसकी कठपुतलियां जिसकी डोर ऊपर वाले की उंगलियों में है..
याद आ गया ना आनंद.. बाबूमोशाय.. जिन्दगी लंबी नहीं बड़ी होनी चाहिए. जीवन में ना जाने रंगमंच पर कितने ही किरदार जी गए और दुनिया को जीने के नए नए तरीके समझा गए.

विश्व के हर कोने में, हर एक देश कई त्यौहार और दिवस मनाए जाते हैं. सभी त्यौहारों और दिवसों का अपना कुछ अलग महत्व होता है और इन्हें इन दिवसों से प्रेरित करने होने के लिए कहा जाता है.

ऐसा ही एक दिवस जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है, वो अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच दिवस हैं. अन्तर्राष्ट्रीय रंगमंच दिवस हर साल 27 मार्च को पूरी दुनिया में मनाया जाता है.

तो आइए, अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच दिवस के बारे में जानते हैं कुछ रोचक जानकारी :-
अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच दिवस प्रत्येक वर्ष 27 मार्च को हर साल मनाया जाता है.
अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच दिवस की स्थापना 1961 में अन्तर्राष्ट्रीय थिएट्रिकल इंस्टिट्यूट द्वारा की गई थी. तब से लेकर अब तक पूरे देश भर में य़ह अन्तर्राष्ट्रीय रंगमंच दिवस के नाम से मनाया जाता है.
यह दिन उन व्यक्तियों के लिए एक उत्सव है, जो थिएटर के मूल्य और महत्वपूर्णता को समझते हैं. यह राजनेताओं, सरकारों और संस्थानों को जागरूक करने का कार्य करते हैं.
अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि विश्व भर में रंगमंच को बढ़ावा देना. रंगमंच से संबंधित अनेक संस्थाओं और समूहों द्वारा इस दिन को मुख्य दिवस के रूप में मनाया जाए. लोगों को रंगमंच के सभी रूपों के मूल्यों से अवगत कराना है.
अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच दिवस किसी जाने माने रंगकर्मी द्वारा रंगमंच और शांति की संस्कृत विषय पर उसके विचारों को व्यक्त करता है.
पहला अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संदेश सन् 1962 में फ्रांस की जीन काक्टे ने दिया था. इसके बाद साल 2002 में यह संदेश भारत के मशहूर रंगकर्मी गिरीश कर्नाड ने किया था.
भारत में रंगमंच का इतिहास बहुत पुराना समयों से चलता आ रहा है, ऐसा माना जाता है कि भारत देश ने ही नाट्यकला का सर्वप्रथम विकास किया था.
ऋग्वेद के कतिपय सूत्रों में यम और यमी, उर्वशी और पुरुरवा आदि के कुछ संवाद हैं. इन संवादों में लोग नाटक के विकास के बारे में बहुत कुछ पाते हैं.
कहा जाता है कि इन्हीं संवादों से प्रेरणा ग्रहण कर लोगों ने नाटक की रचना की और नाट्यकला का विकास हुआ.
ऐसा माना जाता है कि भारत में अगर रंगमंच की बात हो तो छत्तीसगढ़ के रामगढ़ के पहाड़ों पर महाकवि कालिदास जी द्वारा निर्मित एक प्राचीनतम नाट्यशाला मौजूद हैं.
यह माना जाता है कि महाकवि कालिदास जी द्वारा निर्मित नाट्यशाला भारत का सबसे पहला नाट्यशाला हैं.

दुनिया के सबसे बड़े रंगमंच को सजाने वाले हमारे भगवान् श्री हरि सभी पर अपनी कृपा बनाए रखें, हम सबके दिलों में अपना विश्वास जगाए रखें और हमें एक बेहतर इंसान बनाएँ .

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