दुनिया भर में 8 सितंबर को विश्व साक्षरता दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसकी पहल 26 अक्टूबर 1966 को हुई जब संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने ऐलान किया कि हर साल 8 सितंबर को वैश्विक अशिक्षा का मुकाबला करने और शिक्षा को समाज में बदलाव के औजार के तौर पर अपनाने के संकल्प के रूप में मनाया जाएगा. हालांकि, विश्व साक्षरता दिवस का विचार 1965 में तेहरान में आयोजित अशिक्षा के उन्मूलन पर शिक्षा मंत्रियों के विश्व सम्मेलन में आया था.
ताजा सर्वेक्षण के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 77.5 करोड़ व्यस्क ऐसे हैं जो इतने भी साक्षर नहीं हैं कि उन्हें पढ़ा-लिखा कहा जा सके. पूरी तरह निरक्षर लोगों की संख्या इससे कहीं ज्यादा है. यूनेस्को की ग्लोबल मॉनिटरिंग रिपोर्ट ऑन एजुकेशन फॉर ऑल ’(2006) के अनुसार, दक्षिण एशिया में सबसे कम क्षेत्रीय वयस्क साक्षरता दर 58.6% है और इस निरक्षरता का कारण गंभीर गरीबी और महिलाओं के खिलाफ पूर्वाग्रह है.
इस साल की थीम
हर साल संयुक्त राष्ट्र विश्व साक्षरता दिवस को एक थीम के तौर पर मानता है. इस साल वैश्विक कोविड-19 महामारी के खतरे के अनुरूप यह ‘साक्षरता शिक्षण और कोविड -19: संकट और उसके बाद’ पर केंद्रित है. इस साल इस मौके पर ‘शिक्षकों की भूमिका और बदली शिक्षा पद्धति’ पर जोर दिया जा रहा है.
बदले हालात में नई रणनीति
कोरोना महामारी के दौरान, शुरूआत में कई देशों में व्यस्क साक्षरता या प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रमों की कोई तैयारी नहीं थी. इसलिए या तो वे चलाए ही नहीं गए या उन्हें निलंबित कर दिया गया. फिलहाल, टीवी, रेडियो और इंटरनेट के जरिए शिक्षा के काम को आगे बढ़ाया जा रहा है. इस साल इस दिन संयुक्त राष्ट्र शिक्षा के मुद्दे पर कई ऑनलाइन सेमिनार करा रहा है.