एक नज़र इधर भी

राजनीति में महिलाओं की निर्णायक भूमिका के बावजूद भी नहीं मिला ‘समानता का अधिकार’

महिला समानता दिवस
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आज 26 अगस्त है. यह दिन महिलाओं की समानता का अधिकार बढ़ाने के लिए अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर मनाया जाता है. इस दिन महिलाओं की आजादी और समानता के प्रति समाज को जागरूक करने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. इस मौके पर तमाम संगठन और संस्‍थान संगोष्‍ठी का आयोजन करके समानता के अधिकारों का खूब ढिंढोरा पीटते हैं. दूसरी ओर देश में तमाम राजनीतिक दलों के द्वारा महिलाओं को समान अधिकार देने के लिए बड़ी-बड़ी बातें, लंबे-चौड़े भाषण दिए तो जाते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर अमल में लाया नहीं जाता है. आमतौर पर किसी के समानता के अधिकारों को अगर जानना है तो हमें सामाजिक, राजनीतिक परिवेश को समझना होगा.

जब बात महिलाओं की हो रही है तो इनकी भूमिका न तो सामाजिक स्तर पर अभी तक सुधर पाई है न राजनीति में उचित भागीदारी मिल पाई है. बात को आगे बढ़ाएं उससे पहले बता दें कि आज ‘अंतरराष्ट्रीय महिला समानता दिवस’ है. महिलाओं की समानता, राजनीति में उनकी उपेक्षित भागीदारी, समाज में उनको मिले अभी तक बराबरी का हक कितना सफल हो पाया है, इसी पर आज चर्चा करेंगे. बात पहले होगी राजनीति के क्षेत्र में महिलाओं की निर्णायक भूमिका की. भारत में आजादी के बाद से ही महिलाओं को पुरुषों के समान वोट देने का अधिकार जरूर मिला लेकिन उनकी स्थिति अभी तक बेहद विचारणीय है.

बता दें कि राजनीति में महिलाओं का नीति-निर्माण प्रक्रिया में बहुत कम योगदान रहता है, उसके बावजूद उन्हें महत्त्वपूर्ण राजनीतिक फैसलों से दूर रखा जाता है. विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व पड़ोसी देश नेपाल व बांग्लादेश की तुलना में भी कम है. राजनीतिक दलों द्वारा महिलाओं को टिकट देने तथा जीतने के बाद अहम भूमिका देने के मुद्दे पर महिलाओं के प्रति भेदभाव नेताओं की राजनीतिक छवि को दर्शाता है.

भले ही राजनीति में महिलाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व न हो, लेकिन वे अपने बल पर निर्णायक राजनीतिक वर्ग हैं. समानता लाने के लिए राजनीतिक दलों को महिलाओं को राजनीति से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. लेकिन आज सभी राजनीतिक दलोंं की धारणा बन गई है कि महिलाओंं का प्रयोग सत्ता पर काबिज होने के लिए ही किया जाए.

समानता के अधिकारों पर महिलाओं की सामाजिक स्थिति अभी भी दयनीय
बात करेंगे महिलाओं की सामाजिक स्थिति पर समानता अधिकारों की. भारतीय महिलाओं ने हर मोर्चे पर अपनी कामयाबी का परचम लहराया है, लेकिन अब भी ज्‍यादातर महिलाएं ऐसी हैं जो अपने घर और समाज में असमानता और भेदभाव का शिकार हैं. ज्‍यादातर घरों में लड़का-लड़की का फर्क किया जाता है. जहां लड़के की परवरिश में कोई कमी नहीं रखी जाती, वहीं लड़कियों की मूलभूत जरूरतों को भी पूरा नहीं किया जाता.

लैंगिक अनुपात में बड़ा अंतर इस बात का सबसे बड़ा सबूत है. हर साल महिला दिवस और महिला समानता दिवस तो खूब मनाया जाता है, लेकिन आज भी महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कमतर ही आंका जाता है. महत्त्वपूर्ण पदों पर आसीन होने के बावजूद उनके राजनीतिक फैसलों के पीछे उनके पिता, पुत्र या पति की अहम भूमिका होती है. यही नहीं भारत में आज भी अधिकतर महिलाएं आर्थिक रूप से दूसरेेे पर निर्भर हैं. दूसरा पहलू यह है कि महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्रता, आत्मनिर्भर होने की आवश्यकता है.

राजनीति में प्रवेश के लिए उनमें साहस, त्याग तथा निर्भीकता की भावना का विकास होना जरूरी है, जो आर्थिक निर्भरता से ही आएगी. दूसरी ओर भारतीय सामाजिक संरचना का समानता के आधार पर गठन करना होगा जिससे महिलाओं में जागरूकता लाई जा सके. महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों के प्रति सरकारों को कठोर रुख अपनाया होगा.

न्यूजीलैंड में 1893 में महिला समानता दिवस मनाने की हुई शुरुआत
प्रत्येक वर्ष 26 अगस्त को महिला समानता दिवस मनाया जाता है. न्यूजीलैंड विश्व का पहला देश है, जिसने 1893 में महिला समानता की शुरुआत की. उसके बाद अमेरिकी कांग्रेस ने 26 अगस्‍त 1971 में महिला समानता दिवस के रूप में मनाने का एलान किया था. इसी दिन अमेरिकी संविधान में हुए 19वें संशोधन के तहत महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया गया. यह दिवस इसी ऐतिहासिक घोषण की याद में विश्व भर में मनाया जाता है.

यह वह दिन था जब पहली बार अमेरिकी महिलाओं को पुरुषों की तरह वोट देने का अधिकारा दिया गया. इसके पहले वहां महिलाओं को द्वितीय श्रेणी नागरिक का दर्जा प्राप्त था. महिलाओं को समानता का दर्जा दिलाने के लिए लगातार संघर्ष करने वाली एक महिला वकील बेल्ला अब्जुग के प्रयास से 1971 से 26 अगस्त को ‘महिला समानता दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा.

हम अगर अपने देश की बात करें तो भारत में आजादी के बाद से ही महिलाओं को वोट देने का अधिकार प्राप्त तो था, लेकिन पंचायतों तथा नगर निकायों में चुनाव लड़ने का कानूनी अधिकार 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के प्रयास से मिला. इसी का परिणाम है की आज भारत की पंचायतों में महिलाओं की 50 प्रतिशत से अधिक भागीदारी है.

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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