एक नज़र इधर भी

जयंती विशेष: महादेवी वर्मा‘’हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती’’

0
Uttarakhand News
महादेवी वर्मा

“वे मुस्काते फूल नहीं जिनको आता है मुरझाना
वे तारों के दीप नहीं जिनको भाता है बुझ जाना “

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, समाज सुधारक और आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्री एवं महान लेखिका पद्म विभूषित महादेवी वर्मा जी की जयंती पर उन्हें शत् शत् नमन.

प्रख्यात कवयित्री महादेवी वर्मा की गिनती हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभ सुमित्रानंदन पंत, जयशंकर प्रसाद और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के साथ की जाती है. होली के दिन 26 मार्च 1907 को उत्तर प्रदेश क्र फर्रूखाबाद में जन्मी महादेवी वर्मा को आधुनिक काल की मीराबाई कहा जाता है.

वह कवयित्री होने के साथ एक विशिष्ट गद्यकार भी थीं. उनके काव्य संग्रहों में नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्य गीत, दीपशिखा, यामा और सप्तपर्णा शामिल हैं. गद्य में अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएं, पथ के साथी और मेरा परिवार उल्लेखनीय है. उनके विविध संकलनों में स्मारिका, स्मृति चित्र, संभाषण, संचयन, दृष्टिबोध और निबंध में श्रृंखला की कड़ियां, विवेचनात्मक गद्य, साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध शामिल हैं.

उनके पुनर्मुद्रित संकलन में यामा, दीपगीत, नीलाम्बरा और आत्मिका शामिल हैं. गिल्लू उनका कहानी संग्रह है. उन्होंने बाल कविताएं भी लिखीं. उनकी बाल कविताओं के दो संकलन भी प्रकाशित हुए, जिनमें ठाकुर जी भोले हैं और आज खरीदेंगे हम ज्वाला शामिल हैं.

गौरतलब है कि महादेवी वर्मा ने सात साल की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था. उनके काव्य का मूल स्वर दुख और पीड़ा है, क्योंकि उन्हें सुख के मुकाबले दुख ज्यादा प्रिय रहा. खास बात यह है कि उनकी रचनाओं में विषाद का वह भाव नहीं है, जो व्यक्ति को कुंठित कर देता है, बल्कि संयम और त्याग की प्रबल भावना है.

महादेवी वर्मा का रचना-संसार जितना विशाल है, उतनी ही विशालता से उन्होंने अपनी रचनाओं में पीड़ित, दुखी, अबला एवं विरह की मारी स्त्री चित्र उकेरा है. उनकी ऐसी अनेक कविताएं हैं, जिनमें रिक्तता, एकाकीपन और विरह की व्यंजना स्पष्ट दिखाई देती है.

1956 में महादेवी वर्मा को साहित्य एवं शिक्षा में दिए गए उनके महत्त्वपूर्ण के लिए ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया और मरणोपरांत ‘पद्मविभूषण’ से. इसके अलावा ‘भारत भारती’ और ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ जैसे अनेक सम्मानों से सम्मानित होने वाली यह ‘आधुनिक हिंदी जगत की मीरा’ 11 सितंबर, 1987 को अनंत में विलीन हो गईं, लेकिन वे आज भी भारत के साहित्य आकाश में ध्रुव तारे की भांति प्रकाशमान हैं.

उनकी काव्य-रचना ‘जीवन विरह का जलजात’ से कुछ पंक्तियां इसकी एक बानगी हैं.

अश्रु से मधुकण लुटाता या यहां मधुमास
अश्रु की ही हाट बन आती करुण बरसात
जीवन विरह का जलजात!
काल इसको दे गया पल-आंसुओं का हार
पूछता इसकी कथा निश्वास ही में वाट
जीवन विरह का जलजात!

इसी कड़ी में वे आगे ‘जो तुम आ जाते एक बार’ नामक रचना में ‘प्रतीक्षा’ से बोझिल होती हुई स्त्री की व्यथा का वर्णन करती हुई लिखती हैं .

जो तुम आ जाते एक बार!
कितनी करुणा कितने संदेश
पथ में बिछ जाते बन पराग
गाता प्राणों का तार-तार
अनुराग भरा उन्माद राग
आंसू लेते वे पथ पखार
जो तुम आ जाते एक बार!

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version