श्रमिक दिवस विशेष: देश के विकास की बुनियाद में मजबूत भूमिका निभाने वाले मजदूरों की संघर्षों से भरी ‘दास्तान’

आज एक ऐसा दिवस है जिसे पूरी दुनिया भर में मनाया जाता है. इसके साथ यह कई नामों से भी जाना जाता है, जैसे मई दिवस, मजदूर दिवस, श्रमिक दिवस, और लेबर डे. ‘यह करोड़ों लोगों के लिए एक सामान्य दिवस नहीं है बल्कि कठिन हालातों से जूझते कामगार की ऐसी दास्तान है जिसमें उसका त्याग, परिश्रम, समर्पण और बलिदान समाया हुआ है. किसी भी देश के विकास में मजदूरों का सबसे बड़ा योगदान होता है.

मजदूरों के परिश्रम से ही दुनिया की बुनियाद खड़ी हुई है. लेकिन यह वर्ग हमेशा अपने आप को उपेक्षित भी महसूस करता रहा है’. आज 1 मई है . दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस (लेबर डे) मनाया जा रहा है. इस दिवस की इतिहास के पन्नों में मजदूरों को लेकर कई गाथाएं जुड़ी हुईं हैं. ‌

समाज का एक ऐसा मजबूत वर्ग जो सभी की जिंदगी से जुड़ा हुआ है, जो अपने खून पसीने की खाता है. ये ऐसे स्वाभिमानी लोग होते है, जो थोड़े में भी खुश रहते हैं और अपनी मेहनत व लगन पर विश्वास रखते है. 1 मई को मजदूर दिवस मनाने का उद्धेश्य मजदूरों और श्रमिकों की उपलब्धियों का सम्मान करना और योगदान को याद करना है. यह दिवस उनके ‘हक’ की लड़ाई उनके प्रति सम्मान भाव और उनके अधिकारों के आवाज को बुलंद करने का मजबूत दिन है.

इसके साथ ही मजदूरों के हक और अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करना और शोषण को रोकना है. इस दिन बहुत सारे संगठनों में कर्मचारियों को एक दिन की छुट्टी दी जाती है. अगर हम बात करें कोरोना संकटकाल और लॉकडाउन की तो समाज का यही एक ऐसा वर्ग था जो सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ.

भारत समेत तमाम देशों में महामारी के दौरान मजदूरों, कामगारों की बेबसी, लाचारी ने दुनिया को ‘झकझोर’ कर दिया था. सड़कों पर लाखों की संख्या में पैदल ही अपने घरों की ओर पलायन करते मजदूरों, महिलाओं और बच्चों की तस्वीर वर्षों तक नहीं भुलाई जा सकती हैं.

इसके साथ कोरोना संकट काल और लॉकडाउन में काम धंधे की सबसे अधिक मार इन्हीं कामगारों पर पड़ी. जिसकी वजह से इनके सामने रोजी-रोटी का संकट भी खड़ा हो गया. मौजूदा समय में भी यह वर्ग सम्मान और काम की तलाश में भटक रहा है.

अब आइए जानते हैं मई दिवस का इतिहास और कब से इसकी शुरुआत हुई थी. ‌‌बता दें कि श्रमिक दिवस पर 80 से ज्यादा देशों में राष्ट्रीय छुट्टी होती है. वहीं अमेरिका में आधिकारिक तौर से सितंबर के पहले सोमवार को मजदूर दिवस मनाया जाता है. हालांकि मई डे की शुरुआत अमेरिका से ही हुई थी.

साल 1886 में अमेरिका के शिकागो से हुई थी मजदूर दिवस मनाने की शुरुआत
बता दें कि अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस की शुरुआत अमेरिका के शिकागो से हुई थी. धीरे-धीरे यह दुनिया के कई देशों में फैल गया. अमेरिका में 1886 में मई डे के मौके पर 8 घंटे काम की मांग को लेकर 2 लाख मजदूरों ने देशव्यापी हड़ताल कर दी थी.

उस दौरान काफी संख्या में मजदूर सातों दिन 12-12 घंटे लंबी शिफ्ट में काम किया करते थे और सैलरी भी कम थी. बच्चों को भी मुश्किल हालात में काम करने पड़ रहे थे. अमेरिका में बच्चे फैक्ट्री, खदान और फार्म में खराब हालात में काम करने को मजबूर थे. इसके बाद मजदूरों ने अपने प्रदर्शनों के जरिए सैलरी बढ़ाने और काम के घंटे कम करने के लिए दबाव बनाना शुरू किया.

जिसके खिलाफ 1 मई 1886 के दिन कई मजदूर अमेरिका की सड़कों पर आ गए और अपने हक के लिए आवाज आवाज बुलंद करने लगे. इस दौरान पुलिस ने कुछ मजदूरों पर गोली चलवा दी. जिसमें 100 से अधिक घायल हुए जबकि कई मजदूरों की जान चली गई. इसी को देखते हुए 1889 में पेरिस में अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन की दूसरी बैठक के दौरान 1 मई को मजदूर दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा गया.

साथ ही साथ सभी श्रमिकों का इस दिन अवकाश रखने के फैसले पर और आठ घंटे से ज्यादा काम न करवाने पर भी मुहर लगी. वहीं भारत के चेन्नई में 1 मई 1923 में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान की अध्यक्षता में मजदूर दिवस मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई थी.

इस दौरान कई संगठनों व सोशल पार्टियों का समर्थन मिला, जिसका नेतृत्व वामपंथी कर रहे थे. आपको बता दें कि पहली बार इसी दौरान मजदूरों के लिए लाल रंग का झंडा वजूद में आया था. जो मजदूरों पर हो रहे अत्याचार व शोषण के खिलाफ आवाज उठाने का सबसे महत्वपूर्ण दिवस बन गया.

मई दिवस पर देश और दुनिया में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. इसमें कामगारों और मजदूरों के योगदान को याद करते हुए सम्मानित किया जाता है.‌ इसके साथ देश में कई मजदूर संगठन एकजुट होकर अपने हक के लिए आवाज बुलंद करते हैं. ‌

शंभू नाथ गौतम

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