गणेश उत्सव विशेष: गणेश चतुर्थी पर उल्लास-उमंग के साथ विघ्नहर्ता का किया स्वागत, घर-घर विराजे बप्पा

जय गणेशाय नमः. आज देशवासियों को धार्मिक दृष्टि से अलग अनुभूति हुई. एक ऐसी शुभ घड़ी जिसका लाखों-करोड़ों लोग काफी दिनों से इंतजार के साथ तैयारी कर रहे थे. ‘आज से गणेश चतुर्थी पर विघ्नहर्ता, गजानंद, मंगलमूर्ति भगवान गणेश के आगमन होने पर श्रद्धालु अपने आराध्य का स्वागत कर भक्ति में लीन हो गए हैं’. इसी के साथ देशभर में 10 दिन तक गणेश उत्सव की शुरुआत भी हो गई है. गणेश चतुर्थी आते ही घर का माहौल भक्तिमय हो जाता है.

बता दें कि हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर गणेश चतुर्थी मनाते हैं. इसी तिथि पर भगवान गणेश का जन्म हुआ था. सनातन धर्म में गणेश चतुर्थी का विशेष महत्व है. इसी दिन घरों और सार्वजनिक पंडालों में गणेशजी की मूर्ति स्थापित की जाती है.

इस बार 19 सितंबर को अनंत चतुर्दशी पर गणेशजी को विदाई कर इस उत्सव का समापन होगा. महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा और आंध्र प्रदेश समेत पूरे देश भर में गणपत बप्पा की धूम रहती है.

वहीं देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में 10 दिनों तक भगवान गणेश उत्सव का जश्न छाया रहता है. लेकिन इस बार कोविड-19 के वजह से महाराष्ट्र सरकार ने मुंबई के गणेश पंडालों में भीड़ जुटने पर पाबंदी भी लगाई गई है, लेकिन फिर भी भक्त कहां मानने वाले हैं.

मुंबई में सभी धर्म के लोगों में गणपति बप्पा को लेकर गहरी आस्था है. अनंत चतुर्दशी पर भगवान गणेश की प्रतिमाओं को विसर्जित करने के लिए हिंदुओं के साथ मुस्लिम भी जाते हैं. गणेश चतुर्थी पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को शुभकामनाएं दी हैं. अब बात करते हैं देश में गणेश उत्सव की शुरुआत कब से हुई थी.

बता दें कि गणेश उत्सव ने धर्म के साथ देश की आजादी में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में बड़े धूमधाम से मनाए जाने वाले गणेशोत्सव की शुरुआत महाराष्ट्र के पुणे से हुई थी.

हम आपको बता दें कि पुणे का गणेशोत्सव पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. इस उत्सव की शुरुआत शिवाजी महाराज के बाल्यकाल में उनकी मां जीजाबाई द्वारा की गई थी. आगे चलकर पेशवाओं ने इस उत्सव को बढ़ाया और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इसे राष्ट्रीय पहचान दिलाई.

गुलामी काल में बाल गंगाधर तिलक ने इस धार्मिक उत्सव को आंदोलन का रूप दिया
छत्रपति शिवाजी महाराज के बाद पेशवा राजाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया. पेशवाओं के महल पुणे के लोग और पेशवाओं के सेवक काफी उत्साह के साथ हर साल गणेशोत्सव मनाते थे. लेकिन जब तक यह धार्मिक आयोजन जन-जन तक नहीं पहुंच पाया था. ब्रिटिश काल में लोग किसी भी सांस्कृतिक कार्यक्रम या उत्सव को साथ मिलकर या एक जगह इकट्ठा होकर नहीं मना सकते थे, लोग घरों में पूजा किया करते थे.

उसके बाद महान स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने अंग्रेजों के भारत में बढ़ते अत्याचारों को रोकने के लिए वर्ष 1893 में गणेश उत्सव को महाराष्ट्र के पुणे शहर में सार्वजनिक रूप दिया था. आगे चलकर बाल गंगाधर तिलक का प्रयास उनका एक आंदोलन बना और स्वतंत्रता आंदोलन में गणेशोत्सव ने लोगों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई.

गणेशोत्सव में वीर सावकर, लोकमान्य तिलक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बैरिस्टर जयकर, रेंगलर परांजपे, पंडित मदन मोहन मालवीय, मौलिकचंद्र शर्मा, बैरिस्टर चक्रवर्ती, दादासाहेब खापर्डे और सरोजनी नायडू आदि लोग भाषण देते थे और लोगों को संबोधित करते थे. गणेशोत्सव स्वाधीनता की लड़ाई का एक मंच बन गया था. लोगों के इस धार्मिक आयोजन में एकजुट होने पर अंग्रेजों के भी पैर उखड़ गए थे. इस आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

देश में गणेश पर्व अब राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बन गया है
क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के द्वारा शुरू किया गया गणेश उत्सव का स्वरूप धीरे-धीरे देश ही नहीं दुनिया भर में तेजी के साथ बढ़ता गया.‌ भारत देश के करोड़ों हिंदुओं की आस्था से जुड़े भगवान गजानन राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गए.

वर्तमान में महाराष्ट्र में ही साठ हजार से ज्यादा सार्वजनिक ‘गणेश मंडल’ हैं. इसके अलावा आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात में काफी संख्या में गणेशोत्सव मंडल है. इतना ही नहीं अब विदेशों में भी गणेशोत्सव धूमधाम के साथ मनाया जाता है.

भारत में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत भगवान के नाम के साथ ही की जाती है. इस तरह की सभी पूजा या फिर शुभ कार्यों की शुरुआत भगवान गणेश की पूजा के साथ होती है. कोई भी धार्मिक उत्सव, यज्ञ, पूजन इत्यादि सत्कर्म हो या फिर विवाहोत्सव हो, निर्विघ्न कार्य सम्पन्न हो इसलिए शुभ के रूप में गणेश जी की पूजा सबसे पहले की जाती है.

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में गणेश उत्सव की सबसे अधिक धूम रहती है
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में गणेश उत्सव की सबसे अधिक धूम दिखाई पड़ती है. भगवान गणपति बप्पा फिल्म इंडस्ट्रीज के तमाम सेलिब्रिटीज के भी आराध्य माने जाते हैं.

कई फिल्मी सितारे गणेश गणेश चतुर्थी के दिन गजानन को अपने घर पर विराजते हैं. यही नहीं फिल्मी पर्दे पर भी गणेश उत्सव दिखाई पड़ता रहा है. मुंबई के लालबाग राजा की गणेश उत्सव में सबसे अधिक मान्यता भी देखी जाती है. विसर्जन के दौरान पूरा मुंबई शहर भावुक नजर आता है.

यही नहीं उस दौरान ‘बप्पा मोरिया तू अगले बरस जल्दी आ’ सुनकर हजारों भक्तों की आंखों में आंसू भी देखे जाते हैं. देश में कोरोना की तीसरी लहर की दहशत बढ़ रही है. ऐसे में यह धार्मिक आयोजन का उल्लास फीका रहेगा, लेकिन बप्पा के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था और दीवानगी कम नहीं होंगी.

बता दें कि महाराष्ट्र इसे मंगलकारी देवता के रूप में व मंगलमूर्ति के नाम से पूजा जाता है. वहीं दक्षिण भारत में इनकी विशेष लोकप्रियता ‘कला शिरोमणि’ के रूप में है. मैसूर तथा तंजौर के मंदिरों में गणेश की नृत्य-मुद्रा में अनेक मनमोहक प्रतिमाएं हैं.

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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