26 मार्च 1974 एक ऐतिहासिक दिन, यानी चिपको दिवस. जोशीमठ ब्लाक के सीमांत गांव लाता में जन्मी गौरा देवी जिनका विवाह रैणी गांव में हुवा था और बहुत कम उम्र में ही उनके पति का देहांत हो गया था.
उस समय शादी जल्दी हुवा करती थी. उनके एक पुत्र के जन्म के बाद कुछ समय बाद उनके पति का देहांत हो गया और उन पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा पर मजबूत इरादों वाली गौरा देवी ने इन मुसीबतों से लड़ते हुवे सामान्य जीवन जिया. वो गांव में महिला मंगल दल अध्यक्षा चुनी गई.
उस समय उत्तरप्रदेश हुवा करता था तत्कालीन सरकार ने रैणी के पंगरचुला जंगल के पेड़ों के कटान का ठेका दे दिया था. गांव के सभी पुरूषों को एक सोची समझी चाल के तहत प्रशाशन ने मीटिंग के बहाने जिला मुख्यालय गोपेश्वर मंगाया था, और पेड़ों के कटान हेतु टीम,मजदूर ठेकेदार पहुच गए.
गांव में कोई पुरुष नही होने से गौरा देवी ने सभी महिलाओं को एकत्रित किया और जंगल कूच कर गयी. सब महिलाएं घेरा बनाकर पेड़ों पर चिपक गयी और कहा पेड़ से पहले हमको काटना होगा मजदूर ठेकेदार सब गौरा देवी और उसके साथियों का साहस देखकर ठेकेदार व मजदूर हथियार छोड़कर भाग गये, और फिर क्षेत्रीय जनता ने एक विशाल आंदोलन जल जंगल जमीन के सरक्षंण हेतु किया जिसके बाद यह आंदोलन ‘चिपको आंदोलन’ कहलाया. सरकार को मजबूरन यह फैसला वापस लेना पड़ा और गौरा देवी एक इतिहास बन गयी. तब जाकर पर्यावरण नीति बनी.