तीरथ सिंह रावत अपने ही पार्टी के नेताओं के बीच अपने कार्यकाल में ‘सामंजस्य’ नहीं बिठा पाए. पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को लेकर ही उनके कई बार ‘मतभेद’ खुलकर सामने आ गए. इसके साथ तीरथ राजनीति के वह ‘दांवपेच’ नहीं जान पाए जो सत्ता में लंबे समय तक टिके रहने के लिए जरूरी होता है.
हालांकि उनके मुख्यमंत्री पद से हटने के पीछे संवैधानिक कारणों का प्रमुख रूप से उल्लेख किया जा रहा है, लेकिन सीधी-सादी छवि के तीरथ ‘राजनीतिक मोर्चे पर मात खा गए’.
बयानों के आधार पर गढ़ी गई छवि को तीरथ तोड़ नहीं सके. पहले कोरोना के संदर्भ में गंगा को लेकर बयान पर मुख्यमंत्री को सफाई देनी पड़ी. इसके बाद ‘महिलाओं की जींस, देश को अमेरिका का गुलाम बताने समेत कई मौकों पर उनकी जुबान फिसली. इसी तरह पिछली त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के कुछ फैसलों से उपजे जनाक्रोश को थामने की कवायद में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के लंबे सख्त रुख को भी पार्टी के भीतर संतुलन के नजरिए से अच्छे संकेत के रूप में नहीं देखा गया’.
बीती 27 जून को नैनीताल जिले के रामनगर में भाजपा के तीन दिनी चिंतन शिविर के बाद पार्टी का सबसे पहला रणनीतिक कदम मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे की पेशकश के रूप में सामने आया.
शिविर के तुरंत बाद मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को दिल्ली से बुलावा और फिर तीन दिन तक लगातार मंथन के बाद यह तय हो गया कि भाजपा हाईकमान 2022 को होने वाले विधानसभा चुनाव तक तीरथ सिंह रावत को बतौर चेहरा आगे करने नहीं जा रहा है.
‘सांसद से मुख्यमंत्री बने तीरथ सिंह रावत नेतृत्व क्षमता दिखाने को मिले मौके को साबित करने में पूरी तरह गंवा बैठे’. बीती 10 मार्च को प्रदेश के 10वें मुख्यमंत्री बने तीरथ सिंह रावत को 4 महीने से पहले ही हटना पड़ा.
दूसरी ओर उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के नेतृत्व परिवर्तन को लेकर कांग्रेस ने चुटकी ली है. पूर्व सीएम हरीश रावत ने तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे पर कहा कि ‘भाजपा की सरे चौराहे भद्द पिट गई’, प्रदेश में विकास के काम ठप पड़े हैं.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार