शरद पूर्णिमा का दिन मां लक्ष्मी-चंद्रमा की पूजा के अलावा एक और कारण से महत्वपूर्ण माना जाता है. शरद पूर्णिमा पर महर्षि वाल्मीकि की जयंती मनाई जाती है. महर्षि वाल्मीकि को हिन्दू धर्म में श्रेष्ठ गुरु माना गया है.
वाल्मीकि जी पहले डाकू थे लेकिन फिर एक घटना ने उनका जीवन ऐसा बदला कि उन्होंने भगवान श्रीराम के जीवन पर आधारित रामायण नामक महाकाव्य लिख दिया. आदिकवि माने गए महर्षि वाल्मीकि का जीवन बहुत दिलचस्प रहा है.
हर साल आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि के दिन वाल्मीकी जयंती मनाई जाती है और इसी दिन शरद पूर्णिमा भी होती है. पंचांग के अनुसार इस साल आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि 28 अक्टूबर को सुबह 4 बजकर 17 पर शुरू होगी और 29 अक्टूबर को देर रात 1 बजकर 53 पर समाप्त होगी. उदयातिथि के अनुसार इस साल 28 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा के दिन वाल्मीकी जयंती मनाई जाएगी.
ऐसे गुजरा महर्षि वाल्मीकि का बचपन-:
ग्रंथों के अनुसार महर्षि वाल्मीकि का मूल नाम रत्नाकर था. इनके जन्म को लेकर कई मत है, मतानुसार ये ब्रह्माजी के मानस पुत्र प्रचेता की संतान थे. वहीं जानकारों के अनुसार वाल्मीकि जी को महर्षि कश्यप -चर्षणी की संतान माना जाता है. इन्होंने ब्राह्मण कुल में जन्म लिया था लेकिन एक भीलनी ने बचपन में इनका अपहरण कर लिया और भील समाज में इनका लालन पालन हुआ. भील लोग जंगल के रास्ते से गुजरने वालों को लूट लिया करते थे. रत्नाकर ने भी इसी परिवार के साथ डकैती का काम करना शुरू कर दिया.
महर्षि वाल्मीकि के जीवन की खास बातें-:
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार नारद मुनि जंगल के रास्ते जाते हुए डाकू रत्नाकर के चंगुल में आ गए. नारद जी ने रत्नाकार से कहा कि इस कुकर्म से उसे कुछ हासिल नहीं होगा. रत्नाकार ने कहा कि वह ये सब परिवार के लिए करता है. तब बंदी नारद मुनि ने रत्नाकर से सवाल किया कि क्या तुम्हारे घरवाले भी तुम्हारे बुरे कर्मों के साझेदार बनेंगे. रत्नाकर ने अपने घरवालों के पास जाकर नारद मुनि का सवाल दोहराया. जिसपर उन्होंने स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया. डाकू रत्नाकर को इस बात से काफी झटका लगा और उसका ह्रदय परिवर्तन हो गया.
महर्षि वाल्मीकि ने लिख दिया महाकाव्य-:
नारद मुनि के कहने पर रत्नाकार ने राम-नाम का जाप शुरू कर दिया लेकिन उसके मुंह से ‘मरा-मरा’ ही शब्द निकल रहे थे. नारद मुनि ने कहा कि यही दोहराते रहो इसी में राम छिपे हैं. फिर रत्नाकार ने राम-नाम की ऐसी अलख जगाई की उन्हें खुद भी ज्ञात नहीं रहा कि उनके शरीर पर दीमकों ने बांबी बना ली है. इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने दर्शन दिए और इनके शरीर पर लगे बांबी को देखा तो रत्नाकर को वाल्मीकि नाम दिया.
यहां से मिली रामायण लिखने की प्रेरण-:
ब्रह्माजी ने महर्षि वाल्मीकि को रामायण की रचना करने की प्रेरणा दी. इन्होंने रामायण संस्कृत में लिखी थी जिसे सबसे प्रचीन रामायण माना जाता है. इसमें 24,000 श्लोक हैं.