देहरादून| उत्तराखंड बीजेपी एक और बड़े बदलाव की ओर बढ़ रही है. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक की जगह किसी और को जिम्मेदारी दे सकती है. साथ ही ये भी कहा जा रहा है कि बीजेपी मदन कौशिक के साथ एक और कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर दे.
बीजेपी की इस रणनीति के पीछे तेजी से बदले सियासी घटनाक्रम को माना जा रहा है. बीजेपी के अंदर जहां दो-दो सीएम बदल दिए गए, तो वहीं कांग्रेस ने अप्रत्याशित रणनीति अपनाते हुए एक की जगह पांच-पांच अध्यक्ष बना डाले.
इसमें भी जातिगत और क्षेत्रीय समीकरणों का कांग्रेस ने बारिकी से ध्यान रखा है. तराई में पंजाबी समुदाय की बहुलता के चलते ऊधमसिंह नगर से कांग्रेस ने पूर्व कैबिनेट मंत्री तिलकराज बेहड़ को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया.
वहीं, मुख्यमंत्री पुष्कर धामी की विधानसभा सीट खटीमा से युवा नेता भुवन कापड़ी जो कि ब्राहमण चेहरा हैं, को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया.
इसी तरह कुमाऊं से ठाकुर चेहरा रणजीत रावत, गढ़वाल से एससी चेहरा प्रो.जीतराम को भी कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया. गढ़वाल से ब्राहमण चेहरा युवा गणेश गोदियाल को कांग्रेस ने अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंप दी. कांग्रेस की अपेक्षा अब बीजेपी में जातिगत और क्षेत्रीय संतुलन उतना सटीक नहीं दिखाई देता.
हरिद्वार सीट से विधायक और प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक मैदान से हैं, पहाड़ में उनकी उतनी स्वीकार्यता नहीं है. खुद बीजेपी संगठन के भीतर ये कमी महसूस की जाती रही है. इस बीच तीसरे सीएम पुष्कर धामी भी भले ही जन्मे पहाड़ में हों, लेकिन उनकी कर्मस्थली मैदान के तराई की खटीमा सीट ही रही है.
इस बीच हरिद्वार से सांसद रमेश पोखरियाल निशंक को भी केंद्रीय कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखाकर कुमाऊं के नैनीताल से सांसद अजय भटट को केंद्र में राज्य मंत्री बना दिया गया. इससे बीजेपी की सियासी परंपरा के तहत गढ़वाल , कुमाऊं, मैदान, पहाड़ में एक असंतुलन पैदा हो गया. कांग्रेस की रणनीति के बाद तो इस असंतुलन को इतनी हवा मिली कि बीजेपी में अध्यक्ष बदले जाने की चर्चा जोर पकड़ गई.
उत्तराखंड में इस साल मार्च में जब बीजेपी ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाया था, तो उनके साथ ही संगठन में भी बदलाव कर प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत को कैबिनेट मंत्री बना दिया गया था. उनकी जगह मदन कौशिक को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया था. कौशिक को शहरी विकास जैसा महत्वपूर्ण मंत्रालय छोड़ना पड़ा था. हालांकि, कौशिक तब भी इस बदलाव से खुश नहीं थे, लेकिन पार्टी नेतृत्व ने उन्हें मना लिया था.
मदन कौशिक को अध्यक्ष बनाने के पीछे बीजेपी का मकसद मैदानी वोटर्स और खासकर किसान आंदोलन से उपजी एंटी इनकम्बैसी को कम करना था. लेकिन इस बीच त्रिवेंद्र को हटाकर लाए गए तीरथ सिंह रावत को भी चलता कर दिया गया और उनकी जगह मैदान की खटीमा सीट से पुष्कर धामी ने ले ली. अब संगठन और सरकार की कमान एक तरह से मैदान के प्रतिनिधियों के हाथ में है.
पहाड़ की उपेक्षा की इस हवा ने कहीं चुनावी रंग पकड़ लिया तो 2022 में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. बीजेपी के सामने हालात ऐसे बन गए हैं कि वो ये रिस्क नहीं उठा सकती. माना जा रहा है कि जातिगत समीकरणों में सीएम के ठाकुर होने के कारण गढ़वाल से ब्राहमण चेहरे को आगे किया जा सकता है.
इनमें चमोली से विधायक और संगठन में कई पदों पर रह चुके महेंद्र भट्ट , उत्तराखंड आंदोलनकारी , पूर्व मेयर रह चुके धर्मपुर सीट से विधायक विनोद चमोली, पूर्व दायित्वधारी ज्योति गैरोला, यूपी के समय से संगठन में सक्रिय रहे और तीन बार के दायित्वधारी रह चुके बृज भूषण गैरोला का नाम सामने आ रहा है.
इसी हप्ते उत्तराखंड दौरे पर आए राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष, प्रदेश प्रभारी दुष्यंत कुमार गौतम, सह प्रभारी रेखा वर्मा के पीछे भी मुख्य कारण बदलाव की इसी पटकथा को माना जा रहा है. विधायक महेंद्र भट्ट ने इस दौरान राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष से मुलाकात भी की.
हालांकि, बीजेपी इन सारी चर्चाओं को निर्मूल करार दे रही है. संगठन और सरकार के बीच महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत का कहना है कि ऐसा कोई विचार नहीं है. कांग्रेस एक षडयंत्र के तहत इस बात को हवा दे रही है, तो दूसरी ओर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल का कहना है कि बीजेपी अध्यक्ष बदले न बदले कांग्रेस का इससे कोई मतलब नहीं है.
लेकिन, खुद बीजेपी के नेता इस बात को हवा दे रहे हैं. साढ़े चार साल में बीजेपी तीन सीएम बदल सकती है तो कुछ भी कर सकती है.