बता दें कि सौरव गांगुली को पश्चिम बंगाल में बहुत ही सम्मान दिया जाता है. भाजपा, लेफ्ट और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के साथ दादा के अच्छे संबंध माने जाते हैं. यह पहला मौका नहीं है जब सौरव के राजनीति में उतरने के कयास लग रहे हों.
साल 2011 के विधानसभा चुनावों के समय सौरव गांगुली के सीपीएम और टीएमसी में शामिल होने की चर्चाओं ने भी जोर पकड़ा था. बता दें कि वाममोर्चा सरकार ने सौरव को कोलकाता के पूर्वी इलाके में स्कूल के लिए एक प्लॉट भी दिया था, लेकिन उसके कानूनी पचड़ों में उलझने की वजह से वह दादा को नहीं मिल सका.
बाद में तृणमूल कांग्रेस की सरकार आने पर ममता बनर्जी ने दादा को इसी काम के लिए कोलकाता के सबसे पॉश एरिया सॉल्टलेक में दो एकड़ का एक प्लॉट दिया था. सौरव ने इस साल अगस्त में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात कर वह प्लाट लौटा दिया था.
तभी से सियासी गलियारों में चर्चा और तेज हो गई थी कि दादा बंगाल में दीदी के खिलाफ भाजपा का साथ पकड़कर हुंकार भर सकते हैं. अब एक बार फिर भाजपा ने सौरव गांगुली को अपने पाले में शामिल कराने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रखा है. दिल्ली में बैठा भाजपा केंद्रीय आलाकमान भी जानता है कि दीदी को बंगाल में दादा यानी सौरव गांगुली विधानसभा चुनाव में टक्कर दे सकते हैं.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार