प्रयागराज| हाथरस कांड की पीड़िता के परिवार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) याचिका दाखिल की थी. हाईकोर्ट ने पीड़िता के परिजनों की याचिका खारिज कर दी है.
कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट सुनवाई कर रही है. कोर्ट के आदेश पर याचियों को सुरक्षा दी गयी है. ऐसे में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता.
यह आदेश न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर तथा न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की खंडपीठ ने पीड़िता के पिता ओम प्रकाश और 6 अन्य की याचिका पर दिया है. बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका सोनीपत (हरियाणा) के अखिल भारतीय वाल्मीकि महापंचायत के राष्ट्रीय महासचिव सुरेंद्र कुमार ने भी दाखिल की थी.
याचियों का कहना था कि वाट्सएप संदेश के जरिये पीड़िता के परिवार ने महमूद प्राचा व अन्य को वकील बनाया है. अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने याचिका पर आपत्ति की और कहा कि सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका विचाराधीन है.
कोर्ट के आदेश पर पीड़िता के परिवार व गवाहों को सुरक्षा दी गयी है. परिवार ने किसी को भी वकालतनामे देकर याचिका दाखिल करने के लिए अधिकृत नहीं किया है. उन्होंने कहा कि किसे कौन नियुक्त करना चाहता है, यह साफ नहीं है.
मनीष गोयल ने आगे कोर्ट को बताया कि परिवार को पर्सनल गार्ड दिये गये हैं. घर पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, ताकि कोई असामाजिक तत्व घर में न घुस सके. याचियों ने प्रशासन से कभी नहीं कहा वे बाहर जाना चाहते हैं. किसी को रोका नहीं गया है. वे स्वतंत्र हैं. अनपढ़ गरीब परिवार वालों को पता ही नहीं है कि संस्थाए व राजनीतिक दल उनका इस्तेमाल कर रहे हैं.
याचियों के वकीलों का कहना था कि परिवार के लोगो को प्रशासन ने कैद कर रखा है. उन्हें किसी से मिलने नहीं दिया जा रहा है. उनका सेल फोन छीन लिया गया है. किसी से बात नहीं करने दे रहे हैं. हाथरस जिले को ब्लॉक कर दिया गया है. लोगों को पीड़ितों से मिलने नहीं दिया जा रहा है. कोर्ट ने वकीलों से जानना चाहा कि याची क्या दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट में याचिका पर जवाब दाखिल करने जाना चाहते हैं तो कोई जवाब नहीं मिला. हाईकोर्ट ने याचिका पर हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए याचिका खारिज कर दी.