उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने जब से कुर्सी संभाली है तभी से वे अपने फैसलों को लेकर ही ‘घिरे’ रहे . विशेष तौर पर धार्मिक मामलों को लेकर तो उनके अधिकांश फैसले ‘उल्टे’ ही पड़े. ‘मुख्यमंत्री का पद संभालते ही उसी दिन तीरथ सिंह रावत ने हरिद्वार महाकुंभ में देश के सभी लोगों को बिना जांच के आने की इजाजत दे दी थी’. कोविड-19 की दूसरी लहर में मुख्यमंत्री के इस फैसले को लेकर जबरदस्त ‘किरकिरी’ हुई थी. उसके बाद तीरथ को अपना फैसला पलटना पड़ा.
उसके बाद उत्तराखंड सरकार ने महाकुंभ में पाबंदियां लगाईं . लेकिन हरिद्वार महाकुंभ का पूरा आयोजन तीरथ सरकार के लिए ‘परेशान’ करता रहा . विपक्षी पार्टी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने मुख्यमंत्री पर सवाल उठाए इसके साथ नैनीताल हाईकोर्ट ने भी तीरथ सरकार को ‘फटकार’ लगाई थी. बात करते हैं बद्रीनाथ, केदारनाथ गंगोत्री और यमुनोत्री यानी चार धाम की यात्रा को लेकर.
‘देवस्थानम बोर्ड’ को भंग करने के लिए वहां के तीर्थ पुरोहित तीरथ सरकार पर ‘दबाव’ बना रहे हैं. दूसरी ओर आज ‘नैनीताल हाईकोर्ट ने चार धाम की प्रस्तावित यात्रा को लेकर मुख्यमंत्री तीरथ के फैसले को पलट दिया है’. आइए समझते हैं पूरा मामला क्या है. पिछले दिनों तीरथ सिंह रावत की सरकार ने राज्य के निवासियों के लिए एक जुलाई से चारधाम यात्रा शुरू करने का निर्णय लिया था. 20 जून को राज्य सरकार ने दो चरणों में चार धाम यात्रा शुरू करने की घोषणा की.
1 जुलाई से उत्तराखंड के चमोली, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी के निवासियों के लिए इसकी अनुमति होगी. राज्य के बाकी हिस्सों के लोगों के लिए 11 जुलाई से चार धाम की यात्रा की अनुमति दी जाएगी. लेकिन सोमवार को कोविड-19 के बीच चारधाम यात्रा के दौरान पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए रावत सरकार की व्यवस्थाओं पर असंतोष जाहिर करते हुए हाईकोर्ट की खंडपीठ ने उत्तराखंड कैबिनेट के फैसले पर ‘रोक’ लगा दी.
‘उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सरकार के फैसले पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि बड़ा आयोजन हमेशा कोरोना महामारी में एक स्पाइक की ओर ले जाता है. ऐसे में सरकार को एक बार फिर अपने फैसले के बारे में सोचना चाहिए’.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार