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किसानों का आक्रोश भाजपा सरकार के प्रति हर दिन बढ़ता जा रहा है

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बता दें कि इससे पहले केंद्र की मोदी सरकार ने देश में कई विधेयक पारित किए थे जैसे जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना, नागरिकता संशोधन कानून, एनआरसी और जीएसटी आदि के विरोध में कई दिन प्रदर्शन हुए थे, लेकिन इन कानूनों को लेकर मोदी सरकार इतनी परेशान नहीं थी जितनी कि वह कृषि कानून को लेकर है.

इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि यह कानून सीधे ही पूरे देश के किसानों से जुड़ा हुआ है . चाहे राज्य सरकारें हो या केंद्र की सरकारें हो कोई भी किसानों को नाराज करके सत्ता पर अधिक दिन तक काबिज नहीं रह सकती . इस बात को पीएम मोदी समेत भाजपा के आला शीर्ष नेता भी जान रहे हैं तभी किसानों के मुद्दे पर हर कदम हर बयान फूंक-फूंक कर रख रहे हैं.

किसान सरकार से साफ-साफ कह रहे हैं कि कृषि कानून की वापसी के अलावा वो किसी भी बात को मानने के लिए तैयार नहीं हैं . किसानों का आरोप है कि सरकार इन कृषि कानूनों की आड़ में उद्योगपतियों के इशारे पर काम कर रही है और इसी के तहत एमएसपी और मंडियों को इस कानून के जरिए आने वाले वक्त में खत्म कर दिया जाएगा.

किसानों की मानें तो कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग उनके अस्तित्व के लिए ही बड़ा खतरा है और इसके जरिए वो एक तरह से बड़े उद्योगपतियों के गुलाम बनकर रह जाएंगे. किसानों का साफ कहना है कि सरकार को इन कानूनों को वापस लेना चाहिए. इसी मांग को लेकर किसानों का धरना पिछले 25 दिन से जारी है. किसान दिल्ली की सीमाओं पर अपनी मांग को लेकर डेरा डाले हुए हैं और सरकार के सामने लगातार अपनी मांग को बुलंद कर रहे हैं.

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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