पटना/मथुरा| कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव के लिए हर किसी को वैक्सीन का इंतजार है. कोविशील्ड के बाद कोवैक्सीन को भी आपातकालीन इस्तेमाल के लिए मंजूरी दी जा चुकी हे.
इस बीच यूपी के सीएम रह चुके समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के उस बयान से सियासी बवाल मच गया, जिसमें उन्होंने कहा कि वह बीजेपी की वैक्सीन नहीं लगवाएंगे. बीजेपी ने इसे दिनरात वैक्सीन की खोज में जुटे वैज्ञानिकों का अपमान करार दिया तो यह भी कहा गया कि आखिर एक पढ़ा-लिखा इंसान इस तरह की अफवाह कैसे फैला सकता है?
कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने सपा अध्यक्ष की हां में हां मिलाया तो कई अन्य नेताओं ने भी इसे लेकर अपनी आशंकाएं जाहिर कीं. हद तो तब हो गई जब मिर्जापुर के सपा एमएलसी आशुतोष सिन्हा ने यहां तक कह दिया कि इससे लोग नपुंसक भी हो सकते हैं.
इस बीच विपक्षी नेताओं की ओर से ऐसी मांगों ने जोर पकड़ा कि सबसे पहले पीएम मोदी को टीका लगवाना चाहिए और इसे लेकर लोगों के बीच व्याप्त भ्रम को दूर करना चाहिए. इस बीच जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला हालांकि वैक्सीन के समर्थन आए और कहा कि उन्हें दूसरों का नहीं पता, पर वह टीका लगवाएंगे.
इन सबके बीच यह जानना दिलचस्प होगा कि बिहार में मुख्य विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल के नेता और राज्य के पूर्व सीएम लालू प्रसाद के बेटे तेज प्रताप यादव इसे लेकर क्या सोचते हैं? क्या लालू प्रसाद कोरोना वैक्सीन लगवाएंगे? इस बारे में पूछे जाने पर तेज प्रताप कहते हैं, ‘सबसे पहले पीएम को टीका लगवाना चाहिए, इससे देश में अच्छा संदेश जाएगा.’
लालू प्रसाद के बड़े बेटे ने कहा कि अगर पीएम ऐसा करते हैं तो इसे लेकर उठ रहे सवाल खत्म हो जाएंगे. बकौल तेज प्रताप, अगर पीएम मोदी टीका लगवा लेते हैं तो वह खुद और उनके पिता लालू प्रसाद भी टीका लगवा लेंगे.
तेज प्रताप इन दिनों मथुरा में हैं. उन्होंने शुक्रवार को वृन्दावन के ठाकुर बांकेबिहारी व रंगजी मंदिर में दर्शन किए. उनका अक्सर यहां आना-जाना होता है. इस बारे में पूछे जाने पर तेज प्रताप ने कहा, ‘ठाकुरजी के दर्शन की लालसा मुझे ब्रजभूमि में खींच लाती है.
यहां आने से मुझे ऊर्जा मिलती है. वृन्दावन पहुंचकर तो अद्भुत शांति का अहसास होता है.’ आरजेडी ने नेता ने इस दौरान कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमा पर जारी किसान आंदोलन पर भी बात की और कहा कि सरकार को किसानों के हित में काम करना चाहिए.
उन्होंने आरोप लगाया कि कृषि कानून किसानों को फायदा पहुंचाने के लिए नहीं, बल्कि उन्हें सामान्य मजदूर बनाने के लिए लाए गए हैं.