फॉर्मा कंपनियों के लिए अब डॉक्टरों को गिफ्ट देना और मुफ्त में सैर कराना जेब पर भारी पड़ेगा. फाइनेंस बिल 2022 में साफ कर दिया गया है कि अब कंपनियां इस तरह के खर्च को बिजनेस डिडक्सशन के रूप या यू कहें अपनी लागत के रूप में नहीं दिखा पाएंगी. फाइनेंस बिल मेमोरेंडम के अनुसार अब यह रकम टैक्स के दायरे में आएगी. जाहिर है सरकार इस तरह की प्रैक्टिस पर लगाम लगाना चाहती है. अगर इसकी वजह से गिफ्ट देने और दूसरे तरीकों में कमी आती है तो इसका सीधा फायदा मरीजों को सस्ते इलाज के रूप में मिल सकेगा.
क्यों उठाया कदम
असल में यह मुद्दा काफी दिनों से गरम है. इंडियन मेडिकल काउंसिल के 2009 के कोड ऑफ एथिक्स के अनुसार भी यह सलाह दी गई है कि डॉक्टर गिफ्ट और दूसरे मुफ्त सुविधाएं नहीं ले. जिसकी वजह से यह मुद्दा कई न्यायालयों में भी चलता रहा है. जहां भी कोड ऑफ एथिक्स की बात हुई है. ऐसे में फाइनेंस बिल ने यह साफ कर दिया है कि अब यह रकम खर्च नहीं मानी जाएगी.
इस संबंध में फॉर्मा एक्सपर्ट डॉ अनुराग शर्मा का कहना है कि असल में यह एक तरह से रिश्वतखोरी है. कंपनियां डॉक्टरों को अपनी दवाइयों की बिक्री करने के लिए गिफ्ट, विदेश यात्रा, हवाई यात्रा जैसी चीजें देती है. इसी तरह डॉक्टर कई बार मरीजों से गैर जरूरी लैब टैस्ट भी कराए जाते हैं. जिससे कि कंपनियों का इन डायरेक्ट रुप से फायदा पहुंचा सकें. सरकार ने टैक्स के दायरे में लाकर दवा कंपनियों को चेताया है. जिससे इस तरह की प्रैक्टिस पर लगाम लगे. अब टैक्स के दायरे में आने से कंपनियां ऐसे ऑफर देने से बचेंगी. जिसका फायदा सीधे तौर पर मरीजों को होगा. उन्हें डॉक्टर जेनरिक दवाइयां या रासायन का नाम लिखना शुरू करेंगे और गैर जरूर टेस्ट में भी कमी आ सकती है.
क्या है खेल
दिल्ली-एनसीआर के एक प्रतिष्ठित अस्पताल के हदय रोग विशेषज्ञ ने बताया ‘इंडस्ट्री में टारगेट भी दिए जाते हैं. इसका कहीं न कहीं फॉर्म कंपनियों और उपकरण बनाने वाले कंपनियों को ही फायदा पहुंचता है.’ इंडस्ट्री सूत्रों के अनुसार जब कोई आपको मुफ्त में विदेश यात्रा कराएगा, हवाई यात्रा कराएं या फिर महंगे गिफ्ट दे तो निश्चित तौर वह कहीं न कहीं अपना फायदा देखेगा. इसलिए कंपनियां इसे अपना खर्च दिखाती हैं. और उसका खामियाजा मरीजों को महंगे इलाज के रूप में उठाना पड़ता है.
टैक्स नहीं खत्म करे सरकार
एम्स के सेंटर फॉर मेडिसिन विभाग के पूर्व प्रमुख डॉ चंद्रकांत एस पांडव ने फॉर्मा कंपनियों द्वारा डॉक्टरों को दिए जाने वाले गिफ्ट और दूसरे फ्रीबीज पर टैक्स लगाना सही दिशा में कदम है. यह मांग बहुत लंबे समय से चल रही थी. गिफ्ट और दूसरे तरीके एक तरह से रिश्वत देना है. मेरा मानना है कि इसे पूरी तरह से प्रतिबंधित करना चाहिए.