समलैंगिक विवाह मामले पर 5 जजों की संविधान पीठ सुनवाई करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अब इस मामले में 18 अप्रैल को लाइव स्ट्रीमिंग होगी. चीफ जस्टिस की अगुआई वाली तीन जजों की पीठ ने इस मामले को संविधान पीठ के पास भेजे जाने की सिफारिश की है.
केंद्र सरकार के हलफनामे पर जवाब दाखिल करने के लिए याचिकाकर्ताओं को तीन हफ्ते दिए गए. याचिकाओं का विरोध करते हुए केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि यह ‘सामाजिक नैतिकता और भारतीय लोकाचार के अनुरूप नहीं है.’
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हमारे हलफनामे में कहा गया है कि ‘भारतीय वैधानिक और व्यक्तिगत कानून शासन में विवाह की विधायी समझ’ केवल एक जैविक पुरुष और जैविक महिला के बीच विवाह को संदर्भित करती है. इसमें कोई भी हस्तक्षेप व्यक्तिगत कानूनों और स्वीकृत सामाजिक मूल्यों के के नाजुक संतुलन का पूर्व विनाश होगा.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि प्यार, अभिव्यक्ति और पसंद की स्वतंत्रता का अधिकार पहले से ही बरकरार है. उस अधिकार में कोई भी हस्तक्षेप नहीं कर रहा है. यह भी साफ है कि इसका मतलब शादी के अधिकार को मान्यता प्रदान करना नहीं है. उन्होंने कहा कि जिस क्षण समलैंगिक विवाह को मान्यता दी जाएगी, इससे कई सवाल पैदा हो सकते हैं.
इससे किसी बच्चे को गोद लेने पर सवाल उठेगा और इसलिए संसद को बच्चे के मनोविज्ञान के मुद्दे को देखना होगा. उसे जांचना होगा कि क्या इसे इस तरह से उठाया जा सकता है या नहीं. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समलैंगिक जोड़े के गोद लिए हुए बच्चे का समलैंगिक होना जरूरी नहीं है.