देश में अपराधियों और अवैध निर्माण को लेकर ‘बुलडोजर’ एक्शन काफी पॉपुलर है. यूपी में योगी सरकार के बाद देश की कई राज्यों ने क्रिमिनल्स के खिलाफ नकेल कसने के लिए ‘बुलडोजर’ एक्शन को अपनाया है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रैक्टिस को ‘असंवैधानिक’ करार दिया था. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में आज फैसला आने वाला है. जब डीवाई चंद्रचूड़ चीफ जस्टिस थे, तब भी अवैध रूप से तोड़फोड़ करने पर सुप्रीम कोर्ट कड़ी आपत्ति जताई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह की एक भी घटना को “संविधान के मूल्यों के खिलाफ” बता चुका है. साथ ही इस बात पर जोर दिया कि ऐसे मामलों में अखिल भारतीय दिशा-निर्देश तैयार करने की जरूरत है. आज इस मामले में फैसला जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की बेंच सुनाएगी.
– सुप्रीम कोर्ट ने 3 महीने में पोर्टल बनाने का आदेश दिया है. कोर्ट की ओर से कहा गया कि नोटिस में अवैध निर्माण की पूरी जानकारी दी जाए. नोटिस के 15 दिन तक कोई एक्शन ना लिया जाए. लोगों को कार्रवाई से पहले समय दिया जाए. साथ ही पक्ष सुने बिना कार्रवाई नहीं होनी चाहिए.
– बुलडोजर एक्शन पर फैसले की कॉपी पढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 6 गाइड लाइन जारी की है, जिसमें बुलडोजर एक्शन से पहले नोटिस देना जरूरी, बिना पक्ष सुने एक्शन नहीं, डाक के जरिए नोटिस, नोटिस की जानकारी डीएम को देना जरूरी, कोर्ट ने 142 के तहत निर्देश दिया गया, शामिल है.
– सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण समेत तीन फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि अगर कानून के खिलाफ जा कर कोई कार्रवाई की जाती है, तो उसके खिलाफ व्यवस्था स्पष्ट है कि सिविल राइट्स को संरक्षण मुहैया कराना अदालत की जिम्मेदारी है. क्या अपराध करने के आरोपी या यहां तक कि दोषी ठहराए गए व्यक्तियों की संपत्तियों को कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना ध्वस्त किया जा सकता है?
– जस्टिस बीआर गवई ने टिप्पणी करते हुए कहा, ‘कानून की शासन लोकतांत्रिक सरकार की नींव है… मुद्दा आपराधिक न्याय प्रणाली में निष्पक्षता से संबंधित है, जो यह अनिवार्य करता है कि कानूनी प्रक्रिया आरोपी के अपराध के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित न हो. किसी परिवार का घर अचानक तोड़ दिया जाता है. ऐसे मामले में आरोपी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए या नहीं? ऐसे तमाम सवालों पर हम फैसला देंगे, क्योंकि यह अधिकार से जुड़ा मसला है.’
– सरकारी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए. वही, फैसला पढ़ते हुए जस्टिस गवई ने कहा कि कार्यपालिका न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती है. सिर्फ आरोप लगाने से कोई दोषी नहीं हो सकता है.
– बिना मुकदमे के घर तोड़कर सजा नहीं दी जा सकती है. गाइडलाइन्स पर हमने विचार किया है. हम अवैध तरीके से घर तोड़ा तो मुआवजा दें. मनमानी करने वाले अधिकारियों पर एक्शन की सख्त जरूरी है.
बुलडोजर एक्शन पर पहले के फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
6 नवंबर को फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ‘कानून के शासन के तहत यह पूरी तरह अस्वीकार्य है.’ सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि कानून के शासन के तहत “बुलडोजर न्याय” पूरी तरह अस्वीकार्य है क्योंकि नागरिकों की आवाज को उनकी संपत्ति नष्ट करने की धमकी देकर नहीं दबाया जा सकता. जस्टिस जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा था, ‘कानून के शासन के तहत बुलडोजर न्याय पूरी तरह अस्वीकार्य है. अगर इसकी अनुमति दी जाती है, तो अनुच्छेद 300ए के तहत संपत्ति के अधिकार की संवैधानिक मान्यता समाप्त हो जाएगी.
सुप्रीम ने 17 सितंबर को बुलडोजर न्याय पर फैसला सुनाते हुए कहा कि बिन हमारे (सुप्रीम कोर्ट) की अनुमति बिना कोई तोड़फोड़ नहीं कर सकते हैं. जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा था कि उसका आदेश सार्वजनिक सड़कों, फुटपाथों, जल निकायों और रेलवे ट्रैक पर अनधिकृत संरचनाओं पर लागू नहीं होगा.
जस्टिस केवी विश्वनाथन ने कहा, ‘बाहरी शोर हमें प्रभावित नहीं कर रहा है. हम इस समय इस सवाल में नहीं पड़ेंगे कि कौन सा समुदाय…’ जस्टिस गवई ने कहा, ‘ये स्टोरी हमें प्रभावित नहीं कर रही है. हमने यह स्पष्ट कर दिया है कि हम अनधिकृत निर्माण के बीच में नहीं आएंगे… लेकिन, सरकार अदालत नहीं हो सकती.’