नई दिल्ली| सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग से उस जनहित याचिका पर जवाब तलब किया है जिसमें यह मांग की गई थी कि अगर किसी चुनाव में नोटा के पक्ष में अधिकतम मतदान होते हैं तो मतदाताओं को उम्मीदवार को अस्वीकार करने का अधिकार (राइट टू रिजेक्ट) देने के लिए निर्देश दिया जाए.
फिलहाल नोटा का चुनाव में कोई असर नहीं होता है. वो सिर्फ वोटर की नाराजगी जताने के लिए होता है. वोटर इसके जरिये बताते हैं कि उन्हें कोई भी प्रत्याशी नहीं पसंद और उन्होंने किसी को भी वोट नहीं दिया. दरअसल ये मामला राइट टू रिजेक्ट यानी सभी को खारिज करने के अधिकार से जुड़ा है.
इसी सिलसिले में चुनाव में नोटा का विकल्प दिया गया था. यानी अगर किसी वोटर को कोई भी कैंडिडेट पसंद नहीं है तो वो नोटा पर बटन दबाकर अपना मत दे सकता है. लेकिन नोटा का कोई महत्व नहीं होता. सोमवार को हुई सुनवाई में याचिकाकर्ता की वकील मानेका गुरुस्वामी ने कहा कि अगर 99 फीसदी वोटर नोटा पर बटन दबाते हैं तो भी उसका कोई महत्व नहीं है. बाकी के एक फीसदी वोटर के मत ये तय करते हैं कि चुनाव कौन जीतेगा.
इसलिए इस जनहित याचिका में मांग की गई है कि अगर सबसे ज्यादा मत नोटा को पड़ते हैं तो उस जगह का चुनाव रद्द होना चाहिए. लोगों के मत का सम्मान होना चाहिए. इस पर मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबड़े ने कहा कि अगर ऐसा होता है तो उस जगह से कोई भी उम्मीदवार नहीं जीतेगा. यानी वो जगह खाली रह जाएगी. फिर सांसद या विधानसभा का गठन कैसे होगा.
इसके जवाब में गुरुस्वामी ने कहा कि अगर नोटा का मत ज्यादा होता है और कोई भी उम्मीदवार नहीं जीतता है तो वहां समयबद्ध तरीके से दोबारा चुनाव हो सकता है. ऐसे में सब नए उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे. इन सभी सवालों पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग और केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि नोटा का चुनाव में कोई महत्व होगा या नहीं. अगर सुप्रीम कोर्ट याचिका के हक में फैसला देता है तो चुनाव सुधार में ये एक ऐतिहासिक कदम होगा.