देहरादून| उत्तराखंड में बीजेपी हो या कांग्रेस सियासी उठापठक जारी है. पहले बीजेपी ने संगठन और सरकार में अहम बदलाव किए, तो अब कांग्रेस के बदलाव ने नया इतिहास ही रच दिया.
जाति और क्षेत्रीय समीकरणों को साधते हुए कांग्रेस ने एक अध्यक्ष और चार-चार कार्यकारी अध्यक्ष बना डाले, तो इससे बीजेपी की चुनावी रणनीति भी गड़बड़ाती हुई नजर आ रही है, उस पर अब जातिगत और क्षेत्रीय समीकरणों को साधने का दबाव बन गया है.
उत्तराखंड कांग्रेस ने पहली बार एक अध्यक्ष और चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर मुख्य प्रतिद्वंदी पार्टी बीजेपी को भी चौंका दिया. अध्यक्षों को बनाने में भी क्षेत्रीय और जातिगत संतुलन को बनाए रखा गया. लगभग सभी वर्गों ब्राह्मण, ठाकुर, एससी, पंजाबी से अध्यक्ष बनाए गए हैं.
इन सभी जातियों का उत्तराखंड में अपने-अपने हिस्से में प्रभुत्व है. बीजेपी सरकार में नए बनाए गए मुख्यमंत्री पुष्कर धामी तराई की खटीमा सीट से विधायक हैं. कांग्रेस ने खटीमा से ही युवा भुवन कापड़ी को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया.
यही नहीं ऊधमसिंहनगर जिले से पूर्व कैबिनेट मंत्री तिलकराज बेहड़ को भी कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया. यानि की तराई की इस बेल्ट से और मुख्यमंत्री के गृह जिले से कांग्रेस ने दो-दो प्रदेश अध्यक्ष बना डाले.
इसे मुख्यमंत्री पुष्कर धामी को घर में ही घेरने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है. उत्तराखंड में अगर कहीं किसान आंदोलन का प्रभाव देखने को मिलता है, तो वो ऊधमसिहनगर और हरिद्वार दो ही जिले हैं. जहां चुनाव में प्रभुत्व बरकरार रखना बीजेपी के लिए अब और चुनौति बन गया है.
बीजेपी के लिए सबसे बड़ी टेंशन हरीश रावत हैं. कांग्रेस ने हरीश रावत को चुनाव कैंपेन कमेटी का प्रमुख बनाकर एक तरह से रावत को लीडिंग भूमिका में ला दिया है. पूर्व सीएम हरीश रावत का आज भी जनता में अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है. उत्तराखंड कांग्रेस में हरीश रावत ही एकमात्र चेहरा माने जाते रहे हैं, जिनके नाम पर भीड़ को जुटाया जा सकता है.
उत्तराखंड में अगले साल की शुरूआत में चुनाव होने हैं. चुनाव से ठीक पहले और बीजेपी के बाद कांग्रेस संगठन में किए गए ये बदलाव बीजेपी को जरूर कुछ परेशानी में डाल सकते हैं. जिस सोशल इंजीनियरिंग के टूल को कांग्रेस ने प्रयोग किया, कमोबेश बीजेपी में इसकी कमी दिखाई देती है. हालांकि, चुनावी चौसर पर प्यादों की अदल बदली का खेल सबसे पहले बीजेपी ने शुरू किया.
बीजेपी ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए संगठन और सरकार में उठते विरोध के स्वर और कार्यकर्ताओं की नाराजगी के कारण चार साल का जश्न मनाने से आठ दिन पहले ही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को बदल डाला. इसके साथ ही संगठन में भी अहम बदलाव करते हुए प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत को हटाकर उनकी जगह मैदान से मदन कौशिक की ताजपोशी कर दी गई.
तब पहली बार मैदान से प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे किसान आंदोलन के चलते उपजे असंतोष को डायल्यूट करने की कोशिश माना गया. उत्तराखंड में अगर कहीं बडे किसान हैं तो वो ऊधम सिंह नगर और हरिद्वार दो डिस्ट्रिक्ट हैं. इन दोनों डिस्ट्रिक्ट में सत्तर में से विधानसभा की 20 सीटें हैं. यानि कि सियासी माइलेज के हिसाब से दोनों हैवीवेट जिले हैं.
त्रिवेंद्र की जगह लाए गए सांसद तीरथ सिंह रावत को भी बीजेपी ने चार महीने पूरे होने से पहले ही विदा कर दिया. और सीएम बनाए गए ऊधमसिंह नगर की खटीमा विधानसभा सीट से युवा विधायक धामी. इसके साथ ही केंद्र में मंत्री और हरिद्वार सीट से सांसद रमेश पोखरियाल निशंक को केंद्रीय मंत्री पद से हटाकर नैनीताल सीट से सांसद अजय भटट को राज्य मंत्री बना दिया गया.
यानि की बीजेपी धीरे-धीरे पहाड़ से मैदान और गढ़वाल से कुमाऊं की ओर फोकस करती हुई दिखाई दी. बीजेपी के सियासी ट्रेंड के हिसाब से ऐसा पहली बार देखने को मिला. इसके पीछे बीजेपी की उस इंटरनल सर्वे को भी कारण माना जा रहा है जिसमें बीजेपी कुमाऊं और खासकर तराई में कमजोरी होती काऊंट की गई.
हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर और नैनीताल इन तीन जिलों में विधानसभा की 26 सीटें हैं और अगर बीजेपी के प्रभुत्व वाले देहरादून डिस्ट्रिक्ट को भी इसमें शामिल कर लिया जाए, तो सीटों का आंकड़ा 36 पर पहुंच जाता है. यानि की बहुमत से एक ज्यादा. लेकिन, अकेले ऊधमसिहनगर से दो और कुमाऊं से कुल तीन कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने, हरीश रावत को कैंपेन कमेटी का प्रमुख बनाए जाने जैसी कांग्रेस की रणनीति ने बीजेपी को सोचने पर विवश कर दिया है.
हालांकि, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक कहते हैं कि इससे बीजेपी की रणनीति पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. कौशिक का कहना है कि जनता जानती है. कि कांग्रेस को जिस काम के लिए जनमत मिला था, वो न सदन में और न सदन के बाहर उसका सम्मान कर पाई.
इसिलिए वो पांच क्या दस अध्यक्ष भी बनाए, इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. प्रदेश अध्यक्ष से हटाकर नेता प्रतिपक्ष बनाए गए कांग्रेस नेता प्रीतम सिंह का कहना है कि चार साल में तीन-तीन मुख्यमंत्री बदलने वाली बीजेपी उन पर टिप्पणी न करे. प्रीतम कहते हैं जिनके घर शीशे के होते है, वो दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते.
साभार-न्यूज 18