यहां हम आपको बता दें कि वर्ष 2014 से केंद्र में मोदी सरकार आने पर आरएसएस ने पश्चिम बंगाल में अपनी सक्रियता बढ़ा रखी है. इसका सबसे बड़ा कारण रहा है कि ‘बंगाल में वामपंथियों ने संघ और भाजपा को आगे बढ़ने नहीं दिया, जिसका परिणाम हुआ कि वहां हिंदुत्व उभर नहीं पाया’.
उसके बाद बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार ने भी हिंदू और भगवा को रोकने के लिए वामदलों की नीति अपनाई. ममता के विरोध के बाद भी स्वयंसेवक बंगाल में सियासी दृष्टि से काफी सक्रिय हुए हैं. लगभग ‘दो वर्षों से अब बंगाल में एक नया हिंदुत्व समर्थक वर्ग बनकर सामने आया है, इसका नतीजा 2019 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिला’.
यही वजह है कि बीजेपी के बाद अब संघ भी बंगाल होने वाले चुनाव में पूरी तरह से एक्टिव है। इसी को लेकर संघ से बीजेपी में आए नेताओं को केंद्रीय आलाकमान ने बंगाल चुनाव की रणनीति बनाने की जिम्मेदारी सौंपी है.
बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी को आरएसएस का इस बार भरपूर साथ मिलेगा, क्योंकि मौजूदा समय में संघ के 2300 मंडल हैं, प्रत्येक मंडल में दो शाखाएं, साप्ताहिक बैठक ‘मिलन’ और मासिक बैठक ‘मंडली’ का गठन संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कर दिया है.
बता दें कि शाखा के लिहाज से संघ शहरी क्षेत्रों में मौजूदगी रखता है और अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी आधी से अधिक पंचायतों में इसकी मौजूदगी हो गई है. यही वजह है कि बीजेपी की कोशिश पश्चिम बंगाल की सत्ता पर काबिज होने की है, जिसमें संघ काफी अहम भूमिका अदा कर सकता है. इसी को लेकर अहमदाबाद में होने जा रही तीन दिवसीय बैठक संघ और भाजपा के बीच महत्वपूर्ण मानी जा रही है.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार