आज 5 फरवरी है. बात आगे बढ़ाने से पहले आपको ठीक छह महीने पहले यानी 5 अगस्त की तारीख को लिए चलते हैं. जी हां उस दिन उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया जा रहा था. इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, संघ प्रमुख मोहन भागवत और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मौजूद थे.
राम मंदिर निर्माण के लिए हुए भूमि पूजन पर भारतीय जनता पार्टी, आरएसएस विश्व हिंदू परिषद समेत तमाम हिंदू संगठनों और देश की करोड़ों जनता ने हर्षोल्लास व्यक्त किया था और इसे वर्षों बाद आई ‘शुभ घड़ी’ भी बताया था. लेकिन अयोध्या से 1,512 किलोमीटर दूर मुंबई में बैठे महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना यानी मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने एतराज जताते हुए कहा था कि, भाजपा और पीएम मोदी को कोराना संकटकाल में मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन करने की क्या जरूरत थी ? मराठा कार्ड खेलने और उत्तर प्रदेश के नाम पर विरोध करने वाले राज ठाकरे को अब प्रभु श्री राम की अयोध्या नगरी याद आई है. बता दें कि अगले महीने मार्च के पहले सप्ताह में राज ठाकरे ‘रामलला की शरण’ में आ रहे हैं.
महाराष्ट्र की सियासत में बुरी तरह पिछड़ चुके मनसे प्रमुख अब अयोध्या में अपनी राजनीति की नई दिशा तय करने के लिए तैयार हैं. बड़ा सवाल यह है कि ‘आखिर अयोध्या कितने राजनीतिक दलों और नेताओं की किस्मत चमकाएगी’ ? भारतीय जनता पार्टी का उदय अयोध्या में राम मंदिर निर्माण बनाने को लेकर ही हुआ था.
पार्टी के नेताओं ने भाजपा को स्थापित करने में ‘जय श्रीराम के नारे’ का भी सहारा लिया था. अब हम बात करेंगे महाराष्ट्र की शिवसेना पार्टी की. भाजपा के बाद शिवसेना भी हिंदुत्व विचारधारा वाली पार्टी है. शिवसेना के नेता बढ़-चढ़कर बयान देते रहे हैं कि अयोध्या में मस्जिद विध्वंस में भाजपा के बराबर ही हमारे शिवसैनिकों की अहम भूमिका रही है.
पिछले कुछ वर्षों से शिवसेना प्रमुख और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी अयोध्या रामलला की शरण में आ चुके हैं. उद्धव ठाकरेे मौजूदा समय में महाराष्ट्र की सत्ता के सिंहासन पर विराजमान हैं. मुख्यमंत्री बनने के बाद अयोध्या पहुंचकर उद्धव ठाकरे ने रामलला से आशीर्वाद लिया था. भाजपा शिवसेना के नेता दबी जुबान से मानते रहे हैं कि उनकी राजनीति चमकाने में अयोध्या का बड़ा हाथ रहा है.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार