कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से छठ पूजा की शुरुआत हो जाती है. शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ महापर्व मनाया जाता है. नहाए खाए के साथ शुरू होने वाला यह पर्व चार दिनों का होता है जिसकी शुरुआत नहाय-खाय से होती है और समापन सप्तमी को सुबह भगवान सूर्य के अर्घ्य के साथ होता है.
इसमें महिलाएं 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखती हैं और संतान की सुख समृद्धि व दीर्घायु की कामना के लिए सूर्यदेव और छठी मैया की अराधना करती हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार छठी मैया सूर्य देवता की बहन हैं. दिवाली के बाद मनाए जाने वाले इस पर्व की शुरुआत आज यानी 08 नवंबर से हो गई है.
नहाय खाय
छठ का महापर्व 4 दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें पहले दिन को नहाय खाय के नाम से जाना जाता है. इस दिन भक्त नदी में डुबकी लगाते हैं, अपने घर के चारों ओर साफ-सफाई पूरा दिन उपवास रखते हैं.
लोहंडा और खरना
इस पर्व का दूसरा दिन होता है लोहंडा और खरना, इस दिन भी भक्त पूरा दिन उपवास करते हैं और शाम को सूर्यास्त के समय और रात में चंद्रमा को पूड़ी खीर चढ़ा कर ही अपना उपवास खोलते हैं. खीर के अलावा खरना की पूजा में मूली और केला रखकर पूजा की जाती है. इसके अलावा प्रसाद में पूड़ियां, गुड़ की पूड़ियां और मिठाइयां रखकर भी भगवान को भोग लगाया जाता है.
संध्या अर्घ्य
तीसरे दिन तैयार किया जाता है सूर्य देव को अर्पित किया जाने वाला भोग. सूर्यास्त के दौरान व्रत रखने वाले भक्तों को सूर्य देव की पूजा के लिए कई तैयारियां करनी होती है. टोकरी की पूजा कर व्रती सूर्य को अर्ध्य देने के लिए तालाब, नदी या घाट पर जाते हैं और स्नान कर डूबते सूर्य की पूजा करते हैं.
उषा अर्घ्य
इस पर्व के अंतिम यानी चौथे दिन भक्त परिवार के सभी सदस्यों के साथ प्रातः सूर्योदय के समय विधिवत पूजा कर प्रसाद वितरित करते हैं और इसी प्रसाद से वह अपना व्रत खोलते हैं.
क्या हैं पूजा के नियम
अधिकतर व्रत का पालन परिवार की महिलाएं करती है. हालांकि, पुरुष भी इस व्रत का पालन कर सकते हैं. परिवार की खुशहाली और बच्चों की सुख समृद्धि के लिए माताएं उपवास रखती हैं और छठ का महापर्व मनाती हैं. इसके अलावा जो भी परिवार एक बार छठ पूजा करना शुरू कर देता है तो उन्हें हर साल बिना रुके यह व्रत करना पड़ता है.
व्रत का महत्व
छठ पूजा बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बहुत महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है. इस त्योहार के दौरान लोग अपने सबसे अच्छे कपड़े पहनते हैं और सूर्य देव की पूजा करते हैं. इस त्योहार के दौरान पूरा परिवार एक साथ इकट्ठा होता है और एक साथ ही सूर्य देव की प्रार्थना करता है. इसलिए धार्मिक और सामाजिक दोनों दृष्टि से इस त्योहार का हमारे समाज में महत्वपूर्ण योगदान है.