हिंदू रीति-रिवाज़ों के अनुसार करवा चौथ का त्यौहार एक बहुत ही खूबसूरत त्यौहार है जो कि दशहरे और दिवाली के लगभग बीच में पड़ता है. इस साल यह त्यौहार 4 नवंबर को देश भर में मनाया जा रहा है.
करवा चौथ का व्रत अक्सर विवाहित महिलाएं अपने पति के अच्छे स्वास्थ्य और जन्मजन्मांतर तक अपने जीवनसाथी का साथ मिलने की कामना के लिये रखती हैं. लेकिन आजकल अविवाहित युवतियां भी यह व्रत रखती हैं ताकि उन्हें खूब चाहने वाला पति मिले.
इस दिन घर की बड़ी महिलाएं अपनी बहू को सरगी, साड़ी सुबह सवेरे देती हैं. सुबह चार बजे तक सरगी खाकर व्रत को शुरू किया जाता है, सरगी में फैनी, मट्ठी आदि होती हैं.
इस व्रत में पूरे दिन निर्जला रहा जाता है. व्रत में पूरा श्रृंगार किया जाता है. महिलाएं दोपहर में या शाम को कथा सुनती हैं. कथा के लिए पटरे पर चौकी में जलभरकर रख लें. थाली में रोली, गेंहू, चावल, मिट्टी का करवा, मिठाई, बायना का सामान आदि रखते हैं.
प्रथम पूज्य गणेश जी की पूजा से व्रत की शुरुआत की जाती है. गणेश जी विघ्नहर्ता हैं इसलिए हर पूजा में सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है. इस बात का ध्यान रखें कि सभी करवों में रौली से सतियां बना लें. अंदर पानी और ऊपर ढ़क्कन में चावल या गेहूं भरें.
संध्या पूजा का शुभ मुहूर्त 4 नवंबर (बुधवार)- शाम 05 बजकर 34 मिनट से शाम 06 बजकर 52 मिनट तक.
इस व्रत में पूरे दिन निर्जला रहा जाता है. व्रत में पूरा श्रृंगार किया जाता है. महिलाएं दोपहर में या शाम को कथा सुनती हैं. कथा के लिए पटरे पर चौकी में जलभरकर रख लें. थाली में रोली, गेंहू, चावल, मिट्टी का करवा, मिठाई, बायना का सामान आदि रखते हैं.
प्रथम पूज्य गणेश जी की पूजा से व्रत की शुरुआत की जाती है. गणेश जी विघ्नहर्ता हैं इसलिए हर पूजा में सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है. इसके बाद शिव परिवार का पूजन कर कथा सुननी चाहिए.
करवे बदलकर बायना सास के पैर छूकर दे दें. रात में चंद्रमा के दर्शन करें. चंद्रमा को छलनी से देखना चाहिए. इसके बाद पति को छलनी से देख पैर छूकर व्रत पानी पीना चाहिए.