शुक्रवार को पीएम मोदी केदारनाथ के दौरे पर पहुंचे. केदारनाथ में पीएम मोदी का करीब चार घंटे का कार्यक्रम था. केदारनाथ मंदिर में प्रधानमंत्री ने भगवान शिव का रुद्राभिषेक किया और यहां के निर्माण कार्यों का जायजा लिया. इसके बाद उन्होंने आदि गुरु शंकराचार्य की प्रतिमा का अनावरण किया. पीएम ने यहां विकास कार्यों का उद्घाटन भी किया.
केदारनाथ में शंकराचार्य की 12 फीट लंबी और 35 टन वजन वाली प्रतिमा लगाई गई है. प्रधानमंत्री 2013 की प्राकृतिक आपदा में क्षतिग्रस्त हुए शंकराचार्य की समाधि स्थल का लोकार्पण किया. केदारनाथ में पीएम मोदी ने कहा कि जब भारत की जाति पंथ की सीमाओं से बाहर देखने की शंकाओं-आशंकाओं से ऊपर उठने की मानव जाति को जरूरत थी तब समाज में आदि शंकराचार्य ने चेतना फूंकी.
उन्होंने तब कहा कि नाश-विनाश की शंकाएं,जाति-पाति के भेद से हमारी परंपरा का कोई लेना-देना नहीं है. आदि शंकर ने कहा कि आनंद स्वरूप शिव हमीं हैं. जीवत्व से ही शिवत्व है. समय के दायरे में बंधकर भारत को अब भयभीत होने की जरूरत नहीं है.
मुझे विश्वास है कि जितनी ऊंचाइयों पर उत्तराखंड बसा है उससे भी अधिक ऊंचाई को उत्तराखंड हासिल करके रहेगा. कहा जाता है कि पहाड़ का पानी और जवानी उसके काम नहीं आता है लेकिन अब पहाड़ का पानी और जवानी दोनों यहां के काम आएंगे. बाबा केदार के आशीर्वाद के साथ हम आगे बढ़ें, देश को नई ऊंचाई पर ले जाने का हम संकल्प करें. मैं आप सभी को दिवाली, छठ पूजा एवं पर्वों के लिए शुभकामनाएं देता हूं. मेरे साथ बोलिए-जय केदार, जय केदार, जय केदार.
आजादी के अमृत महोत्सव में हमें अपनी हजारों सालों की परंपरा को अनुभूति करने का समय है. गुलामी के कालखंड में हमारी महान चेतना ने हमें बांधकर रखा. एक नागरिक के तौर पर हमें पवित्र स्थानों का दर्शन करने के लिए जाना चाहिए. हमें स्थानों की महिमा जाननी चाहिए. चार धाम सड़क परियोजना पर तेजी से काम रहा है. चारो धाम राजमार्ग से जुड़ रहे हैं.
केदारनाथ में आने वाले समय में श्रद्धालु कार से भी आ सकेंगे. हेमकुंड साहिब में रोपवे बनाने की तैयारी चल रही है. ऋषिकेश और कर्ण प्रयाग को रेल से जोड़ने पर काम चल रहा है. इससे उत्तराखंड के पर्यटन को बहुत लाभ होने वाला है. 21वीं सदी का तीसरा दशक उत्तराखंड का होने वाला है.
विद्वानों ने कहा है ‘शंकरो शंकर: साक्षात’. अर्थात आदि शंकराचार्य भगवान शंकर का साक्षात रूप थे. बाल उम्र से ही शास्त्रों, ज्ञान, विज्ञान का निरंतर चिंतन उन्होंने किया. ये शंकर के भीतर साक्षात शंकरत्व का जागरण था. यहां संस्कृति एवं वेदों के बड़े-बड़े पंडित यहां बैठे हैं. शंकर का संस्कृत में अर्थ जो कल्याण करे वही शंकर है. इस कल्याण को भी आचार्य शंकर ने प्रत्यक्ष रूप से प्रमाणित कर दिया.
उनका पूरा जीवन जितना असाधारण था उतना ही वह जनकल्याण के लिए समर्पित थे. भारत और विश्व के कल्याण के लिए वह अपनी चेतना समर्पित करते रहते थे. भारत जब अपनी एकजुटता को खो रहा था तब शंकराचार्य जी ने कहा था कि राग-द्वेष, लोभ-मोह, ईर्ष्या-अहम ये सब हमारा स्वभाव नहीं है. जब भारत की जाति पंथ की सीमाओं से बाहर देखने की शंकाओं-आशंकाओं से ऊपर उठने की मानव जाति को जरूरत थी तब समाज में उन्होंने चेतना फूंकी.
उन्होंने तब कहा कि नाश-विनाश की शंकाएं, जाति-पाति के भेद से हमारी परंपरा का कोई लेना-देना नहीं है. आदि शंकर ने कहा कि आनंद स्वरूप शिव हमीं हैं. जीवत्व से ही शिवत्व है. अद्वैत का सिद्धांत जहां द्वैत नहीं वहीं तो अद्वैत है. शंकराचार्य ने भारत की चेतना में फिर से प्राण फूंके. हमें आर्थिक, परमार्थिक उन्नति का मंत्र दिया. उन्होंने कहा कि दुख, कष्ट और कठिनाइयों से मुक्ति का एक ही मार्ग है, वह ज्ञान है. आदि शंकराचार्य ने भारतीय ज्ञान-मीमांसा में फिर से चेतना भर दी.