लोकतंत्र के शिखर सम्मेलन’ में पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारतीय कहानी में दुनिया को एक स्पष्ट संदेश है कि लोकतंत्र दे सकता है, दिया है और देना जारी रखेगा. लोकतंत्र सिर्फ लोगों के लिए या लोगों के बारे में नहीं है बल्कि लोगों के साथ और लोगों के भीतर भी है.
मुझे लोकतंत्र के शिखर सम्मेलन में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व करने पर गर्व है.लोकतांत्रिक भावना हमारे सभ्यतागत लोकाचार का अभिन्न अंग है.सदियों का औपनिवेशिक शासन भारतीय लोगों की लोकतांत्रिक भावना को दबा नहीं सका.
भारत की स्वतंत्रता ने पिछले 75 वर्षों में लोकतांत्रिक राष्ट्र-निर्माण में एक अद्वितीय गाथा का नेतृत्व किया.यह सभी क्षेत्रों में अभूतपूर्व सामाजिक-आर्थिक समावेश की गाथा है, यह निरंतर सुधार की कहानी है.
लोकतंत्र सिर्फ जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए नहीं है बल्कि यह जनता के साथ, जनता में समाहित है. भारत को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने में अपनी विशेषज्ञता साझा करने में खुशी होगी.
राष्ट्रपति जो बाइडेन लोकतंत्र पर दो दिवसीय डिजिटल शिखर सम्मेलन का समापन चुनावी ईमानदारी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, निरंकुश शासनों का मुकाबला करने और स्वतंत्र मीडिया को मजबूत बनाने के संकल्प के साथ करना चाहते हैं.
शिखर सम्मेलन के पहले दिन, बाइडेन ने स्वतंत्र मीडिया, भ्रष्टाचार रोधी कार्यों और अन्य का समर्थन करने के लिए दुनिया भर में 42.4 करोड़ डॉलर तक खर्च करने की अमेरिका की योजना की घोषणा की. इस पहल की घोषणा उन्होंने दुनिया भर में लोकतंत्र की कथित खतरनाक स्थिति को पलटने के लिए विश्व के नेताओं से उनके साथ काम करने का आह्वान करते हुए की.
बाइडेन ने पूछा, “क्या हम अधिकारों और लोकतंत्र के अवमूल्यन को अनियंत्रित रूप से जारी रहने देंगे? या हम साथ मिलकर एक दृष्टिकोण बनाएंगे और एक बार फिर मानव प्रगति और मानव स्वतंत्रता की यात्रा को आगे बढ़ाने का साहस दिखाएंगे?”उन्होंने चीन और रूस का नाम लिये बिना बार-बार यह बात उठाई कि अमेरिका और समान विचारधारा वाले सहयोगियों को दुनिया को यह दिखाने की जरूरत है कि लोकतंत्र निरंकुशता की तुलना में समाज के लिए एक बेहतर माध्यम है.
यह बाइडेन की विदेश नीति के दृष्टिकोण का एक केंद्रीय सिद्धांत है – एक ऐसी प्रतिबद्धता है जिसे वह अपने पूर्ववर्ती ट्रंप के “अमेरिका फर्स्ट” दृष्टिकोण की तुलना में अधिक समावेशी बताते हैं.
शिखर सम्मेलन में अन्य नेताओं ने लोकतंत्र की स्थिति पर अपनी-अपनी टिप्पणी दी – जिनमें से कई रिकॉर्डेड थीं. उनकी टिप्पणियों में तेजी से विकसित हो रही प्रौद्योगिकी के उनके राष्ट्रों पर पड़ रहे तनाव को दर्शाया गया. उन्होंने संस्थानों और चुनावों को कमजोर करने के उद्देश्य से दुष्प्रचार अभियानों की वृद्धि पर भी शोक व्यक्त किया.