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इस बार पितृ विसर्जन के समापन पर ‘अधिमास का ग्रहण’, एक महीने बाद आएंगी नवरात्रि

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पितृ विसर्जन


अब कुछ दिनों बाद पितृपक्ष यानी श्राद्ध पक्ष शुरू होने जा रहे हैं. 15 दिनों तक चलने वाले श्राद्ध पक्ष के समापन के बाद भी एक महीने तक आप शुभ कार्य नहीं कर पाएंगे. हिंदू पंचांग के अनुसार पितृ विसर्जन के दूसरे दिन देश में नवरात्रि शुरू हो जाती है, लेकिन इस बार श्राद्ध पक्ष के समापन पर नवरात्रि नहीं शुरू होगी. इसका कारण है कि इस बार अधिमास यानी (मलमास ) का महीना पड़ने की वजह से नवरात्रि का त्योहार एक माह पीछे खिसक गया है.

165 वर्ष बाद ऐसा पहला मौका होगा जब ऐसा संयोग बन रहा है. हर साल पितृ पक्ष के समापन के अगले दिन से नवरात्र शुरू हो जाता है और घट स्थापना के साथ 9 दिनों तक भक्त नवरात्र पर देवी मां की पूजा अर्चना करते हैं. पितृ अमावस्‍या के अगले दिन से प्रतिपदा के साथ शारदीय नवरात्र का आरंभ हो जाता है. लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा. इस बार श्राद्ध पक्ष समाप्‍त होते ही अधिकमास लग जाएगा.

अधिकमास लगने के कारण नवरात्र और पितृपक्ष के बीच एक महीने का अंतर आ जाएगा. आइए आपको बताते अधिमास क्या होता है. एक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब छह घंटे का होता है. जबकि, एक चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है. दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है. यह अंतर हर तीन वर्ष में लगभग एक माह के बराबर हो जाता है.

इसी अंतर को दूर करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अतिरिक्त आता है, जिसे अतिरिक्त होने की वजह से अधिमास का नाम दिया गया है. मलमास के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं. इस समय पूजा-पाठ और साधना का विशेष महत्व बताया गया है. मलमास 18 सिंतबर से शुरू होकर 16 अक्टूबर तक चलेगा. हर साल 24 एकादशी होती है लेकिन मलमास की वजह से इस बार 26 एकादशी होंगी. अधिमास के कारण दशहरा 26 अक्टूबर और दीपावली 14 नवंबर को मनाई जाएगी.


श्राद्ध पक्ष 2 सितंबर से शुरू होकर 17 को होंगे समापन
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि दो सितंबर को है, इस दिन अगस्त्य मुनि का तर्पण करने का शास्त्रीय विधान है. इस वर्ष शुद्ध आश्विन माह का कृष्ण पक्ष अर्थात् पितृपक्ष 2 सितंबर से शुरू होकर गुरुवार 17 सितंबर तक रहेगा. पितृपक्ष एक महत्वपूर्ण पक्ष है. भारतीय धर्मशास्त्र एवं कर्मकांड के अनुसार पितर देव स्वरूप होते हैं. इस पक्ष में पितरों के निमित्त दान, तर्पण आदि श्राद्ध के रूप में श्रद्धापूर्वक अवश्य करना चाहिए.

पितृपक्ष में किया गया श्राद्ध-कर्म सांसारिक जीवन को सुखमय बनाते हुए वंश की वृद्धि भी करता है. इतना ही नहीं, पितृपक्ष में किया गया श्राद्ध कर्म गया श्राद्ध के फल को प्रदान करता हैं. हिंदू धर्म में देवताओं की पूजा से पूर्व पूर्वजों को याद कर उनका आवाहन करने की परंपरा है. पौराणिक ग्रंथों में भी देव पूजा से पूर्व पूर्वजों की स्तुति और स्मरण करने की बात कही गई है. मान्यता है कि पितरों के प्रसन्न होने पर ही पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है और देव पूजा सफल होती है.


पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व है
हम आपको बता दें कि हिंदू शास्त्रों के अनुसार पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए सार्थक का विशेष महत्व है. उनके तर्पण के निमित्त श्राद्ध किया जाता है. यहां श्राद्ध का अर्थ श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों के प्रति सम्मान प्रकट करने से है. श्राद्ध पक्ष में अपने पूर्वजों को एक विशेष समय में 15 दिनों की अवधि तक सम्मान दिया जाता है. इस अवधि को पितृ पक्ष अर्थात श्राद्ध पक्ष कहते हैं. ज्योतिषाचार्य के अनुसार जब सूर्य का प्रवेश कन्या राशि में होता है तो उसी दौरान पितृ पक्ष मनाया जाता है.

पितरों की आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में तर्पण और पिंडदान को सर्वोत्तम माना गया है. हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी माना जाता है. ज्योतिष के अनुसार भी पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है. पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल में पितृ पक्ष श्राद्ध मनाए जाते हैं.

इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं ताकि वे अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें. बता दें कि भारत में पिंडदान के लिए बिहार के ‘गया’ का बहुत ही महत्व माना गया है. कई लोग बद्रीनाथ, केदारनाथ, हरिद्वार, प्रयागराज (संगम) भी जाते हैं अपने पूर्वजों का पिंडदान करने के लिए.

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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