न कोई आयोजन न चेहरे पर पहली जैसी मुस्कुराहट. न लंबे-चौड़े भाषण न किसी पर आरोप, जैसे सब कुछ बहुत जल्दी-जल्दी कहना चाहतीं हों. साथ ही कोई तड़क-भड़क भी नहीं, पूरी तरह सादगी का चोला ओढ़े बसपा सुप्रीमो मायावती की सियासत का सबसे खास दिन आज यूं ही ‘खामोशी’ के साथ बीत गया. हालांकि इस मौके पर मायावती ने प्रेस कॉन्फ्रेंस जरूर की लेकिन पहले जैसा ‘रुतबा’ नजर नहीं आया. अब बात को आगे बढ़ाते हैं.
आज 14 अप्रैल है. इस दिन डॉ भीमराव अंबेडकर जयंती पर बहुजन समाजवादी पार्टी चीफ मायावती बड़े-बड़े आयोजन कर विरोधी दलों के नेताओं की ‘धड़कनें’ बढ़ा देती थीं.लेकिन आज लखनऊ के बसपा कार्यालय में पूरे दिन सन्नाटा छाया रहा. पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के लिए अंबेडकर जयंती पार्टी की स्थापना से लेकर अपने शासनकाल तक दलितों को एकजुट करने के लिए सबसे बड़ा सियासी हथियार माना जाता है.
बसपा सुप्रीमो इस दिन नेताओं और कार्यकर्ताओं से घिरी नजर आती थीं. ‘लखनऊ में तो बाकायदा आलीशान स्टेज सजाया जाता था, उस पर मायावती विराजमान होकर नोटों की माला भी पहनती रहीं हैं, नोटों की माला पहनने पर बसपा सुप्रीमो विपक्षी नेताओं के निशाने पर भी रहीं. इस दिन प्रदेश का पूरा प्रशासनिक अमला मायावती के शाही अंदाज के आगे ‘नतमस्तक’ नजर आता था. सबसे बड़ा सवाल यह है कि ‘अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर इस बार मायावती के लिए अंबेडकर जयंती पर अपने दलित समाज को एकजुट करने के लिए आखिरी मौका था, लेकिन इस बार बाबा साहेब की जयंती पर मायावती के साथ पार्टी के कार्यकर्ता भी खामोश नजर आए’. न कोई आयोजन न कोई शोभा यात्रा निकालने का बसपा सुप्रीमो की ओर से एलान किया गया.
हालांकि प्रदेश में कोरोना से हाहाकार भी मचा हुआ है. बाबा साहेब की जयंती पर मायावती ने बुधवार सुबह लखनऊ में ‘बहुत ही बुझे मन’ से प्रेस कॉन्फ्रेंस तो की लेकिन उनके चेहरे पर पहले जैसा कोई उत्साह दिखाई नहीं दिया. मायावती ने कहा कि इस साल भी कोरोना नियमों का पालन करते हुए बसपा के सभी सदस्य बाबासाहेब अंबेडकर की जयंती मना रहे हैं. ये दिन हमारी पार्टी के लिए खास है, क्योंकि इसी दिन बसपा की शुरुआत की गई थी.
सबसे खास बात यह रही कि मायावती अंबेडकर जयंती से ज्यादा कोरोना महामारी पर बोलती रहीं. कोरोना संकट को लेकर बसपा प्रमुख ने कहा कि देश के गरीबों को वैक्सीन दी जानी चाहिए, केंद्र जो टीका उत्सव मना रहा है, उसमें गरीबों को मुफ्त में टीका मिलना चाहिए. कामगारों केे पलायन पर मायावती ने कहा कि प्रवासी मजदूरों के लिए राज्य सरकारों को खाने और रहने की व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि उन्हें पलायन न करना पड़े और वो कोरोना की चपेट में न आएं.
वैसे हम आपको बता दें कि मायावती पिछले कुछ समय से राजनीति के मैदान में बहुत ही नपा-तुला बोल रहीं हैं. पहले जैसी न कोई आक्रामकता और न ही विरोधियों को ललकारती हुई दिखाई देती हैं.
डॉक्टर अंबेडकर जयंती पर उत्तर प्रदेश में खूब होती रही है सियासत
हर साल 14 अप्रैल को डॉक्टर अंबेडकर जयंती पर उत्तर प्रदेश में खूब सियासत होती रही है. वोट बैंक की खातिर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी में भी डॉ अंबेडकर जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि देने की होड़ लगी रहती थी. यानी इस दिन प्रदेश की राजनीति में अंबेडकर को अपना बनाने के लिए राजनीतिक दल के नेता बड़े-बड़े वायदे और घोषणा करते हुए नजर आते थे.
अभी कुछ दिनों पहले ही समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अंबेडकर जयंती के दिन ‘दलित दिवाली’ मनाने का एलान किया था. सपा के इस एलान के बाद प्रदेश की सियासत में हलचल मच गई थी. बता दें कि सपा के अंबेडकर जयंती जोर-शोर से बनाने के लिए लखनऊ के समाजवादी पार्टी कार्यालय समेत सभी जिलों मेंं सपा कार्यकर्ता जोर-शोर से तैयारियों में जुटे हुए थे.
लेकिन ऐन मौके पर अखिलेश यादव कोरोना संक्रमित होने से अंबेडकर जयंती पर सभी आयोजन टाल दिए गए और सपा कार्यालयों में आज वीरानी छाई रही. ऐसे ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी उत्तर प्रदेश में हो रहे पंचायत चुनाव और अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए दलितों को रिझाने के लिए अंबेडकर जयंती पर कई घोषणाएं करने की तैयारी में थे लेकिन आज सुबह उनकी भी रिपोर्ट पॉजिटिव आने से उन्होंने सिर्फ ट्विटर के माध्यम से ही डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को श्रद्धांजलि देते हुए नमन किया. ऐसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी बाबासाहेब अंबेडकर को ट्वीट करते हुए याद किया.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार
गायब रहा रुतबा: अंबेडकर जयंती पर विरोधियों की धड़कनें बढ़ाने वाली मायावती का ‘खामोश आयोजन’
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