पटना| नीतीश कुमार ने गत सोमवार को सातवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. नीतीश कैबिनेट की पहली बैठक 23 नवंबर को होने जा रही है लेकिन खास बात यह है कि कैबिनेट की इस बैठक में अल्पसंख्यक खासकर मुस्लिम समुदाय से कोई चेहरा नहीं होगा.
बिहार के राजनीतिक इतिहास में ऐसा पहली बार है जब सरकार में किसी मुस्लिम चेहरे को जगह नहीं मिली है. आजादी के बाद से बिहार में जितनी भी सरकारें बनी हैं उनमें मुस्लिम चेहरे को जगह मिलती रही है. बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिन्हा से लेकर नीतीश कुमार के पिछले मंत्रिमंडल तक कम से कम एक या उससे ज्यादा मुस्लिम समुदाय से नेता मंत्री बनते रहे हैं.
बिहार में पिछली तीन सरकारें भाजपा और जद-यू गठबंधन की रही हैं. इन सरकारों में नीतीश कैबिनेट में मुस्लिम जगह पाते रहे हैं. पिछली नीतीश सरकार में जद-यू कोटे से खुर्शीद उर्फ फिरोज अहमद अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री रहे. फिरोज ने इस बार सिकटा सीट से चुनाव लड़ा था लेकिन यहां से वह हार गए. नीतीश कुमार की कैबिटने में किसी मुस्लिम नेता के शपथ न लेने के पीछे जद-यू के कुछ नेता मानते हैं कि इस बार के चुनाव में एनडीए से कोई भी मुस्लिम नेता विधानसभा नहीं पहुंचा है. इसलिए नीतीश ने अपनी सरकार में किसी मुस्लिम चेहरे को शामिल नहीं किया.
बिहार में विधानसभा की 243 सीटें हैं. इस चुनाव में एनीडए ने 125 सीटें जीती हैं लेकिन इनमें कोई भी विधायक मुस्लिम समुदाय से नहीं है. जद-यू ने चुनाव में मुस्लिम समुदाय के कई उम्मीदवारों को टिकट दिया था. जबकि एनडीए में शामिल भाजपा, वीआईपी और हम ने मुस्लिम समुदाय से किसी को अपना उम्मीदवार नहीं बनाया. जद-यू ने इस बार 11 मुस्लमों को टिकट दिया था लेकिन इनमें से कोई भी जीत दर्ज नहीं कर पाया.
नीतीश की पार्टी ने मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र में छह मुस्लिमों को टिकट दिया था. इस क्षेत्र से असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम पांच सीटें जीतने में सफल रही है.
खास बात है है कि बिहार विधासनभा में इस बार पिछली बार के मुकाबले कम मुस्लिम विधायक जीतकर पहुंचे हैं. साल 2015 में मुस्लिम विधायकों की संख्या 24 थी जो इस बार घटकर 19 हो गई है.