आज बात पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की. यह पड़ोसी एक बार फिर भारत से भिड़ने के लिए ‘ताल’ ठोक रहा है. लेकिन इस बार दोनों देशों की टकराव की वजह सरहदों पर तनाव, कश्मीर मसला, आतंकवाद और गोलीबारी की घटना नहीं है. बल्कि दोनों मुल्कों के बीच तनाव की वजह दुनिया के बाजार में व्यापार को लेकर ‘बादशाहत’ कायम करने को लेकर है.
आइए अब जानते हैं पूरा घटनाक्रम. आज हम बात कर रहे हैं चावल की. बात को आगे बढ़ाने से पहले यह भी जान लेते हैं पिछले महीने मई में प्रधानमंत्री इमरान खान सऊदी अरब दौरे से जब लौटे थे तब वहां की सरकार ने पाकिस्तान को ‘खैरात’ में 19 हजार चावल की बोरी दी थी. इसके बाद पाकिस्तान में इमरान खान सरकार की अच्छी खासी ‘फजीहत’ भी हुई थी. इस बार भारत और पाक के बीच ‘बासमती चावल’ को लेकर अंतरराष्ट्रीय बाजार में ‘नंबर वन’ होने के लिए भिड़ंत शुरू हो गई है.
बता दें कि भारत ने एक विशेष ‘ट्रेडमार्क’ के लिए आवेदन किया है जो उसे यूरोपीय संघ में बासमती टाइटल एकमात्र स्वामित्व प्रदान करेगा. इससे भारत को बासमती के टाइटल का ‘मालिकाना हक’ मिल जाएगा. पाकिस्तान इसे अपने चावल उद्योग में ‘घाटे’ का सौदा मान रहा है. भारत के इस कदम पर पाकिस्तान विरोध करनेे में जुटा हुआ है . आपको जानकारी दे दें कि संयुक्त राष्ट्र आंकड़ों के अनुसार भारत दुनिया का सबसे बड़ा चावल ‘निर्यातक’ है, जिसकी वार्षिक आय 6.8 अरब डॉलर है. इस मामले में पाकिस्तान 2.2 अरब डॉलर के साथ चौथे स्थान पर है.
ये दोनों देश ही बासमती चावल के वैश्विक निर्यातक हैं, जो कराची से कोलकाता तक दक्षिण एशिया में रोजमर्रा के आहार में प्रमुखता से शामिल है. बीते तीन वर्षों में पाकिस्तान यूरोपीय संघ में प्रमुख बासमती निर्यातक देश के रूप में सामने आया है. यूरोपीय संघ के अनुसार अब यह क्षेत्र की लगभग 300,000 टन वार्षिक मांग का दो-तिहाई पूरा करता है. यही वजह है कि पाकिस्तान इसे एक महत्वपूर्ण बाजार के तौर पर देखता है.
इसी वजह से भारत के कदम से बौखलाया हुआ है. बता दें कि चावल में बासमती ब्रांड ऐसा है जो नाम से ही बिकता है. शादी-समारोह अन्य आयोजनों में बासमती पुलाव के साथ बिरयानी में प्रयोग किया जाता है. इसकी खुशबू से ही लोग जान लेते हैं कि यह बासमती है.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार