अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के यान ने मंगल ग्रह पर पानी होने का सबूत भेजा. इसके बाद कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने इसकी जांच पड़ताल की.
तो पता चला कि 200 करोड़ साल पहले मंगल की सतह पर पानी बहता था. क्योंकि वहां पर पानी की वजह से बहकर आए सॉल्ट मिनरल्स मिले हैं. जिनके निशान मंगल की सतह पर सफेद रंग की लकीरों के रूप में देखे जा सकते हैं.
करोड़ों साल पहले मंगल ग्रह पर नदियों और तालाबों का अथाह भंडार हुआ करता था. ऐसा माना जाता है कि यहां पर सूक्ष्मजीवन भी रहा होगा. जैसे-जैसे ग्रह का वायु मंडल पतला होता गया. पानी भाप बनकर उड़ गया. सिर्फ जमा हुआ रेगिस्तानी इलाका बचा. यह खुलासा हुआ है नासा के स्पेसक्राफ्ट मार्स रिकॉन्सेंस ऑर्बिटर से मिले डेटा और तस्वीरों के आधार पर.
पहले ऐसा माना जाता था कि मंगल ग्रह से पानी 300 करोड़ साल पहले खत्म हुआ होगा. लेकिन इस स्टडी के बाद पता चला कि नहीं, मंगल की सतह पर पानी 100 करोड़ साल बाद तक था. यानी 200 करोड़ साल पहले खत्म हुआ. यह खुलासा करने के लिए कालटेक के दो वैज्ञानिकों ने MRO से मिले पिछले 15 साल के डेटा का एनालिसिस किया. जिसमें यह पता चलता है कि लाल ग्रह की सतह पर पानी की मौजूदगी 200 से 250 करोड़ साल पहले तक थी. यानी पुराने अनुमान की तुलना में एक अरब साल ज्यादा तक पानी बहा है.
मंगल ग्रह की सतह पर नमक का लकीरें दिखाई दी हैं. जो बर्फीले पानी के पिघलकर भांप बनने के बाद बनी है. जैसे गर्मियों में हमारे कपड़ों पर पसीने की वजह से सफेद लाइनें बन जाती हैं, ठीक वैसी ही. नमक की यह लकीरें पहली बार देखी गई हैं, साथ ही यह इस बात की गवाही देती हैं कि मंगल ग्रह पर खनिज भी हैं. लेकिन इसके बाद सवाल यह पैदा होता है कि मंगल ग्रह पर कितने दिनों तक सूक्ष्मजीव रहे होंगे. क्योंकि धरती पर जहां पानी है, वहां तो जीवन होगा ही. पर मंगल पर मौजूद पानी में कितने दिन जीवन रहा होगा.
इस स्टडी को साइंटिस्ट इलेन लीस्क ने किया है. वो पासाडेना स्थित Caltech में अपनी पीएचडी पूरी कर रही हैं. उनकी मदद की है प्रोफेसर बिथैनी एलमैन ने. इन दोनों ने MRO में लगे कॉम्पैक्ट रिकॉन्सेंस इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर फॉर मार्स (CRISM) के डेटा का सहारा लिया है. जिससे पता चला कि मंगल ग्रह के दक्षिणी गोलार्ध में स्थित इम्पैक्ट क्रेटर यानी गड्ढों में क्लोराइड साल्ट (Chloride Salt) और क्ले से भरे हुए हाईलैंड्स हैं.
मंगल की सतह बने गड्ढे उम्र पता करने में मदद करते हैं. जिस सतह पर कम गड्ढे यानी वो सतह काफी ज्यादा युवा. क्रेटर की गिनती करके इलाके की उम्र का अंदाजा लगाया जा सकता है. MRO के पास दो कैमरे हैं. दोनों अलग-अलग कामों में उपयोग किए जाते हैं. पहला कॉनटेक्स्ट कैमरा (Context Camera) जो सिर्फ काले और सफेद रंग की वाइड एंगल तस्वीरें लेता है. इसी ने क्लोराइड की मौजूदगी बताई.
क्लोराइड की मौजूदगी पता चलने के बाद उस इलाके में हाई-रेजोल्यूशन इमेजिंग साइंस एक्सपेरीमेंट (HiRISE) कलर कैमरा तैनात किया गया. ताकि जहां पर कॉनटेक्स्ट कैमरा ने सफेद लकीरें दिखाई दी थी, वहां पर HiRISE ने बारीकी से और जांच की. इसके बाद इन इलाकों के नक्शे बनाए गए. इलेन लीस्क और एलमैन ने बताया कि मंगल की सतह पर मौजूद गड्ढों की तलहटी में क्लोराइड की मात्रा काफी ज्यादा है. हालांकि ये गड्ढे कभी छिछले तालाब हुआ करते थे. क्लोराइड की मौजूदगी कुछ ज्वालामुखीय मैदानी इलाकों में भी दिखाई दिया.
एलमैन ने बताया कि MRO के कैमरों ने एक दशक से ज्यादा समय में कई तरह की तस्वीरें भेजीं. हाई-रेजोल्यूशन, स्टीरियो, इंफ्रारेड डेटा आदि. इसी कैमरे की मदद से हमें पता चला है कि मंगल ग्रह की सतह पर नदियां और तालाब थे. नासा के मार्स ओडिसी ऑर्बिटर ने मंगल ग्रह पर सॉल्ट खनिजों की सबसे पहले खोज की थी. यह बात करीब 14 साल पुरानी है. मार्स ओडिसी ऑर्बिटर साल 2001 में लॉन्च किया गया था.
साभार-आज तक