नासा ने भारतीय मूल की पहली अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला के नाम पर किया स्पेसक्राफ्ट लॉन्च

वाशिंगटन| भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला के नाम से नासा ने सिग्नस स्पेशशिप को लॉन्च कर दिया है. कल्पना चावला भारतीय मूल की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री हैं, जिनका वर्ष 2003 में दुघर्टना के चलते मौत हो गई थी.

अमेरिका की एयरोस्पेस कंपनी नार्थरोप ग्रुमैन के इस कार्गो स्पेसशिप को लॉन्‍च किया है. इसे बीते 29 सितंबर को ही लॉन्च किया जाना था, लेकिन मौसम की खराबी के चलते इसे अब लॉन्च किया गया है.

अभी भी लॉन्चिंग से ठीक पहले इसके ग्राउंड सपोर्ट इक्विपमेंट में खराबी आने की खबर आई थी लेकिन बाद में फिर उसे ठीक कर स्‍पेसशिप को लॉन्‍च किया गया.

इसके बारे नासा ने ट्वीट कर जानकारी दी है. इस स्पेशशिप का काम इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर सामान पहुंचाने की होगी.

कल्पना चावला 16 जनवरी, 2003 को अमेरिकी अंतिरक्ष यान कोलंबिया के चालक दल के रूप में अंतरिक्ष में जाने वाली भारत की पहली महिला बनी थीं.

01 फरवरी 2003 को अंतरिक्ष में 16 दिनों का सफर पूरा करने के बाद वापसी के दौरान पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते समय और निर्धारित लैंडिंग से सिर्फ 16 मिनट पहले साउथ अमेरिका में अंतरिक्ष यान कोलंबिया दुर्घटनाग्रस्त हो गया और कई टुकड़ों में बंटकर नष्ट हो गया.

इस हादसे में कल्पना चावला समेत सभी चालक जान गंवा बैठे थे. तीन साल बाद सुनीता विलियम्स 2006 में भारतीय मूल की दूसरी अंतरिक्ष यात्री बन गईं.

इस स्पेसक्राफ्ट के निर्माता नॉर्थरोप ग्रूममैन ने एक ट्वीट में घोषणा थी कि आज हम कल्पना चावला का सम्मान करते हैं, जिन्होंने नासा में भारतीय मूल की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री के रूप में इतिहास बनाया है.

उन्होंने कहा कि मानव अंतरिक्ष यान अभियान में उनके योगदान का सकारात्मक और स्थायी प्रभाव पड़ा है. मिलिए हमारे अगले सिग्नस यान एस. एस. कल्पना चावला से.’

ग्रूममैन ने कहा कि यह कंपनी की परंपरा है कि प्रत्येक सिग्नस का नाम एक ऐसे शख्स के नाम पर रखा जाए जिसने मानव अंतरिक्ष यान अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो.

कल्पना चावला को अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की पहली महिला के रूप में इतिहास में उनके अहम स्थान के सम्मान में चुना गया था.

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गौरतलब है कि 17 मार्च 1962 को हरियाणा के करनाल में कल्पना का जन्म हुआ था. उन्हें आकाश से इतना प्यार था कि वह बचपन से ही हवाई जहाज के चित्र बनाती थीं.

20 साल की उम्र में वह अमेरिका चली गईं और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर नासा में काम करना शुरू कर दिया.

उन्हें पहली बार 19 नवंबर 1997 को अंतरिक्ष में जाने का मौका मिला. उनके काम से खुश होकर नासा ने उन्हें फिर 16 जनवरी 2003 को अंतरिक्ष में भेजा.

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