मॉनसून में घर से बाहर कदम रखते ही मच्छरों का हुजूम हमारे सिर पर मंडराने लगता है. हाफ स्लीव्स के कपड़े पहनकर बाहर जाना तो और मुश्किल हो जाता है. मच्छर पार्क, मैदान यहां तक कि घर में भी हमारा पीछा नहीं छड़ते हैं.
लाख कोशिशों के बाद भी इनसे पिंड छुड़ाना मुश्किल हो जाता है. आपको जानकर हैरानी होगी कि मच्छर कुछ लोगों को ही ज्यादा परेशान करते हैं. इसके पीछे कई वैज्ञानिक कारण भी बताए गए हैं.
वैज्ञानिकों का दावा है कि इंसानों को सिर्फ मादा मच्छर ही काटते हैं. इसका कारण मादा के प्रजनन से जुड़ा है. दरअसल मादा मच्छर इंसान के खून में मौजूद पोषक तत्वों को लेने के बाद ही अंडे देती है.
कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) की गंध भी मच्छरों को तेजी से इंसानों की तरफ आकर्षित करती हैं. मादा मच्छर अपने ‘सेंसिंग ऑर्गेन्स’ से इसकी गंध पहचान लेती है.
सांस छोड़ते वक्त इंसान के शरीर से निकलने वाली कार्बन डाईऑक्साइड गैस के कारण मच्छर कुछ लोगों को ज्यादा काटते हैं. मच्छर 150 फीट की दूरी से भी इसकी गंध को बड़ी आसानी से पहचान लेते हैं.
शोधकर्ताओं का दावा है कि कुछ विशेष गंध मच्छर को ज्यादा तेजी से आकर्षित करती हैं. इंसान की त्वचा में रहने वाले बैक्टीरिया से रिलीज होने वाले यूरिक एसिड, लैक्टिक एसिड और अमोनिया की महक से भी मच्छर इंसान के पास ज्यादा मंडराते हैं. शरीर का तापमान ज्यादा होने की वजह से इंसान को जो पसीना आता है, उसमें ये तत्व ज्यादा निकलते हैं.
जापान के शोधकर्ता ये साबित कर चुके हैं कि ए ब्लड ग्रुप की तुलना में ओ ब्लड ग्रुप के लोगों को मच्छर ज्यादा काटते हैं. इस ब्लड ग्रुप के लोग मच्छरों के लिए किसी चुम्बक की तरह काम करते हैं. जबकि बी ब्लड ग्रुप के लोगों को मच्छर सामान्य रूप से ही काटते हैं.
साभार-आज तक