किसी भी केंद्र सरकार के लिए अपनी योजनाओं और नीतियों का बखान करने के लिए ‘बजट’ की परीक्षा सबसे बड़ी मानी जाती है. बजट यह बताता है कि केंद्र सरकार ने पिछले वर्ष क्या किया और आने वाले वर्ष में क्या करने जा रही है. सही मायने में बजट बीते साल का वह लेखा-जोखा होता है जो अगले वर्ष का भविष्य निर्धारण करता है.
सबसे बड़ी बात यह है कि पिछले वर्ष पेश किए गए बजट की घोषणाओं में सरकार कितना खरा उतरी. कठिन चुनौतियों का सामना करते हुए भी केंद्र सरकारों को आम और खास लोगों की उम्मीदों को पूरा करने की बड़ी चुनौती होती है. बजट के पिटारे से निकली तमाम योजनाएं और वादे देश की अर्थव्यवस्था पर असर डालते हैं, साथ ही यह बजट आम और खास लोगों की जिंदगी से भी जुड़ा हुआ होता है.
इसीलिए हर वर्ष फरवरी में पेश किए जाने वाले बजट पर पूरे देश की निगाहें लगी होती हैं. जी हां आज 31 जनवरी, रविवार है. कल 1 फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण संसद में अपने पिटारे से आर्थिक बजट को पेश करने की तैयारी में जुटी हुईं हैं.
यहां हम आपको बता दें कि बजट पेश होने वाला दिन साल का वो दिन भी होता है, जब लोगों को राजकोषीय घाटा, विनिवेश, कैपिटल गेन्स टैक्स, पुनर्पूंजीकरण जैसे शब्द सुनाई देते हैं। लेकिन प्रत्येक भारतीय की नजर इस बात पर भी होती है कि अब उन्हें कितना टैक्स देना होगा और कौन सी चीजें सस्ती या महंगी हुई हैं.
आइए आज बजट को लेकर कुछ चर्चा की जाए. वित्त मंत्री का भाषण भी बजट डॉक्युमेंट का ही एक हिस्सा होता है और यह बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. इस बार अर्थव्यवस्था में सुस्ती, वित्तीय क्षेत्र के संकट मसलन बढ़ते डूबे कर्ज और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) में नकदी के संकट, रोजगार सृजन, निजी निवेश, निर्यात में सुधार, कृषि क्षेत्र के संकट और सार्वजनिक निवेश बढ़ाने की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लिए बड़ी चुनौती होगी.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार