केंद्र की भाजपा सरकार ने कृषि विधेयक संसद से पारित कराकर किसानों के साथ मध्य प्रदेश ‘शिवराज सिंह चौहान सरकार की भी टेंशन बढ़ा दी है’.
अब आप कहेंगे एमपी में तो भाजपा की सरकार है वहां सीएम की टेंशन क्यों बढ़ गई.
बात को आगे बढ़ाने से पहले कुछ वर्ष आपको पीछे लिए चलते हैं.
साल 2013 से 18 तक शिवराज सिंह सरकार ने मध्य प्रदेश में सरकार चलाई थी. शिवराज के पिछले कार्यकाल में मध्य प्रदेश के किसान नाखुश थे.
यही नहीं ‘वर्ष 2018 में राज्य में हुए विधानसभा चुनावों में किसानों की नाराजगी की शिवराज सिंह चौहान को सत्ता से बाहर करने की एक बड़ी वजह बनी थी’.
इसी वर्ष मार्च में जब शिवराज सिंह ने एमपी में काग्रेस के बगावती नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ मिलकर कमलनाथ की सत्ता छीन कर खुद सीएम बन गए.
शिवराज सिंह के सीएम पद शपथ लेने के एक महीने बाद मध्य प्रदेश के जिले मंदसौर में पुलिस ने किसानों पर लाठियां और गोलियां चला दी थी, जिसमें कई किसान घायल हो गए थे.
इस गोलीकांड के बाद शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर प्रदेश के किसानों के निशाने पर आ गए.
इसके बाद राज्य के पूर्व सीएम कमलनाथ ने शिवराज सिंह पर हमला बोला था. यह थी पुरानी बात, अब आइए चर्चा को आगे बढ़ाते हैं.
‘पिछले दिनों जब केंद्र की भाजपा सरकार किसान विधेयक संसद में पारित कराने की तैयारी कर रही थी तब मध्यप्रदेश में बैठे सीएम शिवराज सिंह का दिल अंदर ही अंदर रो रहा था.
लेकिन बात एक ही विचारधारा और पार्टी की थी इसलिए शिवराज सिंह चौहान इसका विरोध नहीं कर पाए’.
पिछले कुछ माह से मुख्यमंत्री चौहान का पूरा फोकस राज्य में होने वाले 28 विधानसभा सीटों के उपचुनाव पर टिका हुुआ है.
28 में से सबसे अधिक 17 सीटों पर ग्वालियर संभाग में चुनाव होने जा रहे हैं.
यह क्षेत्र ऐसा है जिसके किसान शिवराज सिंह से अधिक नाराज हैं.
किसानों की नाराजगी दूर करने के लिए बताते हैं शिवराज ने क्या नया सियासी दांव खेला है.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार