पश्चिम बंगाल में आगामी महीनों में होने वाले विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला सत्ताधारी दल तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच माना जा रहा है. दोनों ही दलों के नेता एक-दूसरे पर निशाना साधने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं.
भाजपा के शीर्ष नेताओं ने मुख्यमंत्री और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. लेकिन आपको बता दें कि भले ही बीजेपी और टीएमसी आज धुर विरोधी हों, ममता बनर्जी भाजपा और मोदी सरकार की बड़ी विरोधी हों, लेकिन कभी टीएमसी और बीजेपी के बीच गठबंधन भी हुआ है और ममता बनर्जी केंद्र में एनडीए की सरकार में मंत्री भी रही हैं.
ममता बनर्जी ने कांग्रेस से अलग होकर 1998 में तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की थी. 1998 के लोकसभा चुनावों में TMC ने 7 सीटें जीतीं. 1999 में हुए अगले लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने बीजेपी के साथ 8 सीटें जीतीं. 2004 के लोकसभा चुनावों में टीएमसी ने बीजेपी के साथ 1 सीट जीती. 2006 के विधानसभा चुनावों में टीएमसी ने बीजेपी के साथ 30 सीटें जीतीं.
1999 में ममता बनर्जी अटल बिहारी वाजपेयी की नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में रेल मंत्री बनीं. 2001 में उन्होंने एनडीए से अलग होकर कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया और पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव लड़ा.
हालांकि वह बिना किसी पोर्टफोलियो के सितंबर 2003 में एनडीए सरकार में लौट आईं. ममता के साथ उनके पार्टी सहयोगी सुदीप बनर्जी को भी वाजपेयी मंत्रालय में शामिल किया गया था. 9 जनवरी 2004 को उन्होंने कोयला और खान मंत्रालय का कार्यभार संभाला.
2004 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी को सिर्फ 1 सीट मिली और एनडीए भी सत्ता से बाहर हो गई. 2009 में हुए लोकसभा चुनाव से पहले टीएमसी का कांग्रेस के साथ गठबंधन हुआ. टीएमसी 19 सीट जीती. यूपीए सरकार में भी ममता रेल मंत्री बनीं. 2011 में बंगाल की मुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.