सत्ता के दबाव के आगे बेबस निर्वाचन आयोग, बिहार प्रचार के दौरान नेता दे रहे हैं खुली चुनौती

बिहार विधानसभा के चुनाव प्रचार को देखकर लग ही नहीं रहा कि ये चुनाव कोरोना महामारी और निर्वाचन आयोग की दी गई गाइडलाइन के अनुसार हो रहा है.

सभी पार्टियों में होड़ लगी है कि उनकी जनसभाओं में कितनी अधिक से अधिक भीड़ आ सकती हैं.

एक भी नेता ऐसा नहीं है जो बिहार में प्रचार के दौरान कोविड-19 महामारी के दिशा-निर्देशों का पालन करता नजर आया हो. सबसे पहले बात करेंगे पीएम मोदी की.

मोदी देशवासियों को लगातार इस महामारी के बचाव के लिए राष्ट्र को अभी तक सात बार संबोधित कर चुके हैं.

‘हर बार अपने संबोधन में पीएम जनता को इस महामारी से बचने के लिए सख्त से सख्त हिदायत देने से भी नहीं चूके’.

पिछले दिनों 23 अक्टूबर को पीएम ने बिहार के सासाराम, गया और भागलपुर में ताबड़तोड़ चुनावी रैली की, इन जनसभाओं में लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग का खूब मखौल उड़ाया.

लेकिन ‘मोदी ने कोरोना की गाइडलाइन पर एक शब्द भी नहीं कहा’. ऐसे ही राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव की रैली में सबसे अधिक भीड़ दिखाई पड़ रही है.

बीजेपी, आरजेडी, जेडीयू, कांग्रेस और एलजेपी समेत सभी पार्टियों में चुनाव प्रचार के दौरान निर्वाचन आयोग की दी गई गाइडलाइन की खुलेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं.

लेकिन निर्वाचन आयोग खामोश बना हुआ है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि ‘आयोग स्वतंत्र फैसले नहीं ले पा रहा है उसको सत्ता का कहीं न कहीं दबाव जरूर है’.

लगातार मीडिया और सोशल मीडिया में बिहार चुनाव प्रचार की जो तस्वीरें आ रही है वह बता रही है कि किसी भी पार्टी के नेताओं को निर्वाचन आयोग का कोई डर नहीं है.

‘यही नहीं सभी दलों के नेता अपने अपने प्रचार रैलियों में उमड़ी भीड़ का फोटो सोशल मीडिया में शेयर कर निर्वाचन आयोग को खुली चुनौती भी दे रहे हैं’.

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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