शारदीय नवरात्र के दिनों में देश के हिंदू धर्म के लोग कई तरह से उपवास रखते हैं. कुछ का उपवास काफी कठिन और बिना पानी के रखा जाता है लेकिन ज्यादातर लोग सामान्य उपवास रखते हैं, जिसमें वो फलाहार या फलाहारी भोजन का उपभोग करते हैं.
फलाहारी भोजन में व्रत का सेंघा नमक, फल, गिनी चुनी सब्ज़ियां, कुट्टू या राजगिरा आटा, साबूदाना जैसी कुछ ही चीज़ें खा सकते हैं. इन्हें इस उपवास में खाने लायक माना गया है. लेकिन प्याज और लहसुन (Onion & Garlic) की सख्त मनाही है.
वैसे तो अगर हम आयुर्वेद की बात करें तो आमतौर पर इन दोनों के इस्तेमाल को लेकर मना ही किया जाता है. प्याज को आयुर्वेद तामसिक कहता है तो लहसुन को राजसिक. शास्त्रों में तो सख्त तौर पर ब्राह्मणों को इन दोनों के निषेध के बारे में कहा गया है. इनसे दूर रहने को कहा गया है.
शरीर की बायोलॉजिकल क्रियाओं पर भोजन किस तरह प्रभाव डालता है, इसे लेकर आम तौर से आयुर्वेद में भोजन को तीन रूपों में बांटा गया है – सात्विक, तामसिक और राजसी. इन तीन तरह के भोजन करने पर शरीर में सत, तमस और रज गुणों का संचार होता है.
सात्विक भोजन क्या है?
सात्विक भोजन का संबंध सत् शब्द से बताया गया है. इसका एक मतलब तो ये है कि शुद्ध, प्राकृतिक और पाचन में आसान भोजन हो और इस शब्द से दूसरा अर्थ रस का भी निकलता है यानी जिसमें जीवन के लिए उपयोगी रस हो.
इन तमाम अर्थों के बाद बात ये है कि ताज़े फल, ताज़ी सब्ज़ियां, दही, दूध जैसे भोजन सात्विक हैं और इनका प्रयोग उपवास के दौरान ही नहीं बल्कि हर समय किया जाना अच्छा है. सात्विक भोजन के संबंध में शांडिल्य उपनिषद और हठ योग प्रदीपिका ग्रंथों में उल्लेख मिलता है. मिताहार या कम भोजन यानी भूख के हिसाब से भोजन करने को ही उचित बताया गया है.
शारदीय नवरात्र के दिनों में व्रत के खाने में प्याज और लहसुन का सख्ती से परहेज किया जाता है. इन्हें तामसिक और राजसिक भोजन माना गया है. वैसे हिंदू और जैन धर्म में आमतौर पर प्याज और लहसुन से दूर रहने की सलाह दी जाती है.
तामसिक और राजसी भोजन
तमस यानी अंधेरे से तामसिक शब्द बना है यानी सबसे पहले तो इस तरह के भोजन का मतलब बासी खाने से है. ये भोजन शरीर के लिए भारीपन और आलस देने वाला होता है. इसमें बादी करने वाली दालें और मांसाहार जैसी चीज़ें शामिल बताई जाती हैं.
राजसिक भोजन बेहद मिर्च मसालेदार, चटपटा और उत्तेजना पैदा करने वाला खाना है. इन दोनों ही तरह के भोजनों को स्वास्थ्य और मन के विकास के लिए लाभदायक नहीं बल्कि नुकसानदायक बताया गया है. कहा गया है कि ऐसे भोजन से शरीर में विकार और वासनाएं पैदा होती हैं.
अब प्याज़ और लहसुन की बात
आयुर्वेद का वैज्ञानिक सिद्धांत मौसमों के अनुसार उपयुक्त भोजन करने की बात पर ज़ोर देता है. शारदीया नवरात्र चूंकि बारिश के तुरंत बाद और सर्दी से पहले के मौसम में आती है इसलिए यह दो मौसमों के बीच का समय है. आयुर्वेद की मानें तो मौसम परिवर्तन के समय शरीर की प्रतिरोधी क्षमताएं कम होती हैं इसलिए अक्सर खांसी और ज़ुकाम जैसे सामान्य संक्रमण दिखते हैं.
खाना हमारी अच्छाई, लालसाओं, और जहालत पर असर डालते हैं. प्याज और लहसुन और इस परिवार की अन्य वनस्पतियां राजसिक और तामसिक खाने के तौर पर वर्गीकृत की गई हैं, मतलब ये हुआ कि वो हमारी लालसाओं और अज्ञानता को बढाती हैं.
ये तर्क ये कहता है कि न केवल इस मौसम में बल्कि किसी भी ऐसे मौसम बदलने के समय में सात्विक भोजन करना ही शरीर और सेहत के लिहाज़ से सबसे उपयुक्त होता है. तामसिक और राजसिक भोजन करने के खतरे होते हैं और सामान्य तौर से भी इस किस्म के भोजन को सेहत के अनुकूल नहीं माना गया है.
कुछ धर्मों में भी क्यों की गई प्याज निषेध की बात
कई धर्म ऐसे हैं जिनमें लहसुन-प्याज खाने पर पाबंदी है. बहुत से रेस्टोरेंट और भोजनालय आपको मिल जाएंगे, जहां लिखा होगा- यहां लहसुन-प्याज से खाना नहीं बनता. कुछ लोग ऐसे मिल जाएंगे, जो पूरे तौर पर अपने खाने में प्यार-लहसुन से परहेज करते हैं.
खासकर हिंदू और जैन धर्म में प्याज और लहसुन के निषेध की बात की गई है. हिंदुओं में भी वैष्णव लोग आमतौर पर इससे दूर रहते हैं. किसी भी पूजा-पाठ की भोजन सामग्री में इसका इस्तेमाल कतई नहीं होता. जैन धर्म तो किसी भी जड़ वाले खाने से परहेज की बात करता है.
अगर इसका सेवन किया जाए तो क्योंकि वो शरीर की चेतना जागृत करने के काम में बाधा पेश करते हैं. दिमाग को एकाग्न नहीं होने देते.एक मशहूर शेफ और लेखक कूरमा दास ना तो प्याज खाते हैं और ना ही लहसुन. वो कहते हैं, “मैं कृष्ण भक्त हूं और भक्ति योग करता हूं, इसलिए ना तो लहसुन खाता हूं और ना ही प्याज. भगवान कृष्ण के भक्त इन दोनों से परहेज करते हैं.” ऐसा क्यों. इसका एक लंबा उत्तर है.
क्या है वजह
आयुर्वेद के अनुसार, प्याज और लहसुन से दूर होने की उसकी सबसे बड़ी वजह ध्यान और भक्ति के लिए अहितकर होना है. अगर इसका सेवन किया जाए तो क्योंकि वो शरीर की चेतना जागृत करने के काम में बाधा पेश करते हैं. दिमाग को एकाग्न नहीं होने देते.
पाश्चात्य चिकित्सा की कुछ शाखाएं प्याज के लशुनी परिवार को स्वास्थ्य के लिहाज से लाभदायक मानती. लहसुन के बहुत से गुण गिनाए जाते हैं. उसे नेचुरल एंटीबॉयोटिक माना जाता है, लेकिन अब भी जो नए अध्ययन हो रहे हैं, उसमें लहसुन और प्याज खाने को अब भी बहुत अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जा रहा है.
लहसुन के बारे में माना जाता है कि उसको कच्चा खाने से हानिकारक बाटूलिज्म बैक्टीरिया आपके शरीर में जगह बना सकता है और इससे घातक बीमारियां हो सकती हैं. रोमन कवि होरास ने लिखा भी है कि लहसुन को हैमलाक (एक विष का पौधा) से ज्यादा नुकसानदेह है.
प्याज के शास्त्रीय एवं मानस शास्त्रीय प्रयोग हो चुके हैं. प्याज के छिलके निकालते समय अंदर की गंध मन को विचलित कर देती है. नर्व सिस्टम पर असर डालती है प्याज और लहसुन को आध्यात्मिक लोग आमतौर नहीं खाते क्योंकि वो आपके नर्व सिस्टम पर असर डालते हैं. आयुर्वेद का कहना है कि लहसुन सेक्स पॉवर क्षति की सूरत में टॉनिक की तरह होता है, जो कामोत्तेजक का काम करता है.
प्याज के शास्त्रीय एवं मानस शास्त्रीय प्रयोग हो चुके हैं. प्याज के छिलके निकालते समय अंदर की गंध मन को विचलित कर देती है. आंखों से पानी आना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है.
प्याज के सेवन का असर रक्त में रहने तक मन में काम वासनात्मक विकार मंडराते रहते हैं. प्याज चबाने के कुछ समय पश्चात् वीर्य की सघनता कम होती है और गतिमानता बढ़ जाती है. परिणामस्वरूप वासना में वृद्धि होती है.
बरसात के दिनों में प्याज खाने से अपच एवं अजीर्ण आदि उदर विकार उत्पन्न हो जाते हैं. पवित्र रसोईघर में प्याज-लहसुन का प्रयोग अपवित्र माना जाता है. ये पूजा-पाठ में पूरी तरह प्रतिबंधित है. धार्मिक अनुष्ठान-व्रत आदि मौकों पर भोजन में लहसुन-प्याज का इस्तेमाल नहीं किया जाता.
साभार- न्यूज़ 18