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नमक डालते ही क्यों हो जाती है जोंक की मौत, जानिए

जोंक
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लीच यानी जोंक तो आपने देखा ही होगा! इसे हमलोग खून चूंसने वाले कीड़े के रूप में जानते हैं. यह एक तरह से मांसाहारी कीड़ा होता है, जबकि इंसानों या अन्य जानवरों का खून भी चूसता है. शरीर में चिपककर यह कीड़ा खून चूसता है. इसे मारने के लिए अक्सर लोग नमक का प्रयोग करते हैं. क्या आप जानते हैं कि नमक डालने पर जोंक की मौत क्यों हो जाती है?

खून चूसने वाली लीच यानी जोंक का वैज्ञानिक नाम ‘हिरुडो मेडिसिनेलिस’ है. आपको बता दें कि यह एक ऐसा कीड़ा होता है, जो गीली जगहों पर पाया जाता है. ये Hemophagic होते हैं यानी खून इनका आहार होता है. अगर आप किसी हरे भरे नमी वाले इलाके में रहते हैं, तो इसे आपने देखा ही होगा. जब कोई जोंक किसी इंसान के शरीर से चिपक जाती है, तब उसपर नमक डाल कर त्वचा से हटाया जाता है.

नमक डालने पर जोंक की मौत हो जाती है. इसके पीछे नमक का रासायनिक गुण जिम्मेदार होता है. दरअसल, जोंक की त्वचा बहुत नाजुक होती है और नमक की क्वालिटी है कि यह नमी यानी पानी को सोख लेता है. ऐसे में जोंक की पतली त्वचा होने के कारण और Osmotic Pressure यानी परासरण दबाव की मदद से, नमक जोंक के शरीर का पूरा पानी सोंख लेता है.

शरीर में पानी का अभाव होता है तो जोंक के शरीर के सेल्स यानी कोशिकाएं काम करना बंद कर देती हैं और छटपटाते हुए जोंक की मौत हो जाती है. इसलिए जब किसी व्यक्ति के शरीर में जोंक चिपक जाता है और उसका खून चूसने लगता है तो नमक डालने की सलाह दी जाती है. हालांकि जोंक का इस्तेमाल चिकित्सा में भी किया जाता है, जिसे जलौका पद्धति कहा जाता है.

आयुर्वेद में इलाज के लिए बिना विष वाले जलौका का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें जोंक शरीर से गंदा खून चूस लेते हैं और डेड सेल यानी मृत कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं. ऐसा दावा किया जाता है कि शरीर के किसी हिस्से में जब स्किन खराब होती है और ब्लड सर्कुलेशन बंद हो जाता है तो डेड सेल को एक्टिव करने के लिए जलौका पद्धति में जोंक की जरूरत पड़ती है. ये दूषित ब्लड को ही चूसते हैं और शुद्ध ब्लड छोड़ देते हैं. इस दौरान घाव भी बनते हैं, जिसकी मरहम-पट्टी कर मरीज को घर भेज दिया जाता है.

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