नई दिल्ली| 26 नवम्बर से भारत के किसान केंद्र सरकार के 3 नए कानून के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं और अब तो दिसम्बर 8 को भारत बंद का आयोजन किया है और लगभग सभी विपक्षी पार्टी किसानों के भारत बंद का समर्थन कर रहे हैं.
किसान आंदोलन को समझने के लिए 4 प्रश्नों को समझना बहुत जरूरी है – पहला , किसान आंदोलन क्या है ? दूसरा , किसान क्या चाहते हैं ? तीसरा , सरकार क्या चाहती है ? चौथा और आखिरी , आखिर बात क्यों नहीं बन पा रही है ?
पहला सवाल किसान आंदोलन क्या है?
सितंबर 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने 3 नए कृषि कानून बनाए.
पहला, कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020
दूसरा , कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020
तीसरा , आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक -2020
इन तीनों कानून के पास होते ही पंजाब के किसानों ने इसका विरोध शुरू कर दिया और धीरे धीरे हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने मिलकर आंदोलन शुरू कर दिया और ऐलान कर दिया कि दिल्ली चलो जिसके बाद ये आंदोलन 26 नवम्बर से शुरू हो गया. आंदोलन खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है और ना ही कोई समझौता होता दिखाई दे रहा है.
किसान और सरकार के बीच 5 दौर की वार्ता हो चुकी है और 9 दिसम्बर को छठे दौर की वार्ता होनी है. लेकिन किसानों ने 8 दिसम्बर को भारत बंद का ऐलान भी कर दिया है और बंद को 11 विपक्षी पार्टियां यानि काँग्रेस , टीएमसी , अकाली दल , आप पार्टी , वामपंथी दलों और अन्य कई पार्टियों ने समर्थन दे दिया है . इतना ही नहीं खिलाड़ी , कलाकार और छात्रों ने भी अपने समर्थन देने शुरू कर दिया है.
अब दूसरा सवाल आखिर किसान क्या चाहते हैं ?
किसान केंद्र सरकार से 3 कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं और इनकी जगह किसानों के साथ बातचीत कर नए कानून लाने को कह रहे हैं. किसानों की 5 प्रमुख मांगें इस तरह हैं…
तीनों कृषि कानूनों को वापस लिया जाए क्योंकि ये किसानों के हित में नहीं है.
किसानों को लिखित में आश्वासन दिया जाए कि एमएसपी सिस्टम खत्म नहीं होगा.
किसान बिजली बिल 2020 का भी विरोध कर रहे हैं. इस बिल से किसानों को सब्सिडी पर या फ्री बिजली सप्लाई की सुविधा खत्म हो जाएगी.
पराली जलाने पर किसान को 5 साल की जेल और 1 करोड़ रुपये तक का जुर्माना हो सकता है. किसान इसका भी विरोध कर रहे हैं.
पंजाब में पराली जलाने के चार्ज लगाकर गिरफ्तार किए गए किसानों को छोड़ा जाए.
बल्कि किसानों ने 5 वें दौर की वार्ता के दौरान सरकार से सीधे सीधे हाँ या ना में तीन सवाल पूछे हैं:
पहला, सरकार बताए कि वह कृषि कानूनों को खत्म करेगी या नहीं?
दूसरा , MSP को पूरे देश में जारी रखेगी या नहीं?
तीसरा, नए बिजली कानून को बदलेगी या नहीं?
तीसरा सरकार क्या चाहती है?
5 दिसम्बर को करीब पांच घंटे की बैठक खत्म होने के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने MSP और APMC पर साफ साफ कहा कि पिछली व्यवस्था जारी रहेगी.
पहला , कृषि मंत्री का कहना है कि एमएसपी(MSP)की व्यवस्था जारी रहेगी. इसे खत्म नहीं किया जाएगा.
दूसरा , कृषि मंत्री का कहना है कि यह एक्ट राज्य का है और नए कानून से मंडी का सिस्टम खत्म नहीं होगा.
तीसरा , मोदी सरकार किसानों के हितों को हमेशा वरीयता में रखा है. जबसे मोदी सरकार आई है तब से MSP बढ़ी है.
एक साल में हम 75 हजार करोड़ रुपए किसानों के खातों में भेजे हैं. 10 करोड़ किसानों को 1 लाख करोड़ से ज्यादा पैसा दे चुके हैं.
चौथा और आखिरी सवाल , बात क्यों नहीं बन पा रही है?
इसका उत्तर ये है कि किसान सरकार के मौखिक जवाब पर विश्वास नहीं कर रही है. किसानों का कहना है कि सरकार जो भी मौखिक बातें कह रही है उसे बिल में शामिल क्यों नहीं कर रही है. यही कारण है कि मामला उलझ गया है किसानों के शंका और सरकार के दावों में. देखिये शंका और दावे के बीच कैसे तीनों कानून कैसे फंस गए हैं.
1. कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020
किसान क्या कहते हैं : एमएसपी सिस्टम समाप्त हो जाएगा.
सरकार क्या कहती है: एमएसपी जारी रहेगी.
2. कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020
किसान क्या कहते हैं : कृषि में कॉन्ट्रेक्ट सिस्टम लाने से किसानों की स्थिति कमजोर हो जाएगी.कांट्रैक्ट सिस्टम में बड़े व्यापारियों को वरीयता दी जाएगी. यदि कोई विवाद होता है तो सरकारी ऑफिसर एसडीएम या डीएम विवाद का निबटारा करेंगे और वो हमेशा बड़े कॉर्पोरेट हाउस को सपोर्ट करेंगे. कोर्ट की व्यवस्था खत्म कर दी गयी है जो किसानों के हित में हो सकता है.
सरकार क्या कहती है:कृषि में कॉन्ट्रेक्ट करना है या नहीं, ये निर्णय किसान करेंगे अन्य कोई नहीं कांट्रैक्ट का पेमेंट 3 दिन में हो जाएगा यदि कोई विवाद होता है तो इसका निबटारा एस SDM या DM करेंगे जिससे किसानों को कोर्ट का चक्कर ना लगाना पड़े.
3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक -2020
किसान क्या कहते हैं : बड़े कॉर्पोरेट हाउस आवश्यक वस्तुओं का स्टोरेज कर लेंगे जिससे कालाबाजारी बढ़ेगी. और इसका खामियाजा किसानों को भी भुगतना पड़ेगा.
सरकार क्या कहती है:बड़े कॉर्पोरेट के आने से किसानों को फायदा होगा क्योंकि बड़े कॉर्पोरेट हाउस कृषि क्षेत्र में पूंजी लगाएंगे जिससे कृषि और किसान दोनों को फायदा होगा.
आखिर में 3 बातें
पहला , किसान और सरकार को मिलकर समाधान ढूंढना चाहिए. लेकिन कृषि क्षेत्र में सुधार लाना भी जरूरी है और किसानों का हित साधना भी जरूरी है.
दूसरा, विपक्ष राजनीति करे लेकिन सरकार और किसान के बीच समाधान ढूँढने में ना कि स्थिति को और उलझाने में ऐसा नहीं होना चाहिए कि किसान को बहाना बनाकर और पीएम मोदी निशाना बनाएँ.
तीसरा, प्रधानमंत्री मोदी ने दर्जनों कठिन निर्णय लिए हैं उसी तरह इस मुद्दे पर भी किसानों के हित में एक कठिन निर्णय लेना चाहिए जिससे किसान भी खुश और आंदोलन भी खत्म हो जाए. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने मंत्रियों के कई घंटों तक बैठक की है इसलिए आशा है कि समाधान जरूर निकलेगा.