गोवत्स द्वादशी धनतेरस से एक दिन पहले मनाई जाती है. इस दिन गाय और बछड़े की पूजा की जाती हैं. हिंदू धर्म में गाय को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि गाय के गोबर में माता लक्ष्मी हमेशा विराजमान रहती है. शास्त्र के अनुसार इस दिन व्रत रखने वाले भक्त गेहूं और दूध से बने चीजों को नहीं खाते हैं. गोवत्स द्वादशी को नंदनी व्रत के रूप में भी मनाया जाता है.
नंदनी हिंदू धर्म में दिव्य गाय हैं. भारत के महाराष्ट्र राज्य में गोवत्स द्वादशी को वासु बरस के नाम से मनाया जाता है. इसे दीपावली का पहला दिन माना जाता है. इस साल गोवत्स द्वादशी 1 नवंबर दिन सोमवार को मनाया जाएगा. मान्यताओं के अनुसार इस दिन गाय और बछड़ों की पूजा करने से देवी-देवता के साथ-साथ पितृ भी प्रसन्न होते हैं. धर्म के अनुसार गौ सेवा करना सबसे बड़ा अनुष्ठान माना जाता है.
गौ माता की करें पूजा
मान्यता के अनुसार इस दिन यदि माताएं श्रद्धा-पूर्वक गौ माता की पूजा करें, तो गौ माता उनके बच्चे की सदैव रक्षा करती हैं. यह व्रत माताएं अपने संतान की मंगल कामना के लिए करती है. इस दिन बछड़े वाली गाय की पूजा करने के साथ गौ की रक्षा करने का संकल्प भी किया जाता हैं. भक्त इस दिन गौ माता को हरा चना, अंकुरित मूंग, मोठ, चना एवं गुड़ श्रद्धा पूर्वक खिलाते हैं.
चाकू का नहीं होता इस्तेमाल
गोवत्स द्वादशी वर्त रखने वाली माताएं चाकू से किसी चीज को काटती नहीं है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के जन्म के बाद इसी दिन माता यशोदा ने गौ माता का दर्शन और पूजन किया था. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गौ माता के रोम-रोम में देवी-देवताओं निवास करते हैं. वेद में भी गौ माता को प्रतिष्ठित रूप दिया गया है. पंडितों के अनुसार गौ माता को भोजन कराने से वह भोजन देवी-देवताओं तक पहुंच जाता है.
डेट और टाइम
गोवत्स द्वादशी की डेट
इस साल गोवत्स द्वादशी की पूजा 1 नवंबर सोमवार को मनाई जाएगी.
गोवत्स द्वादशी का टाइम
द्वादशी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 01, 2021 को 1 बजकर 21 मिनट से
द्वादशी तिथि समाप्त – नवम्बर 02, 2021 को सुबह 11 बजकर 31 मिनट तक
यदि आपको गोवत्स द्वादशी की पूजा करने हो, तो आप शाम 5 बजकर 36 मिनट से रात 8 बजकर 11 मिनट तक कर सकते हैं।