Holika Dehan 2022: कब है होलिका दहन, तीन विशिष्ट योग के साथ पूजन मुहूर्त-जानें विधि

होलिका दहन को होलिका दीपक और छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है, इसे नवन्नेष्टि यज्ञ भी कहा जाता है. होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है.

होलिका अज्ञान व अहंकार को निरूपित करती है, जबकि प्रहलाद ईश्वर के प्रति निष्ठा व निश्छलता को दर्शाते हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जाता है. हालांकि इस बार होलिका दहन को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है.

जानें कब है होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
इस बार होलिका दहन 17 मार्च 2022, गुरुवार को है. पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन हिरण्याकश्यप ने श्रीहरि भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद को आठ दिनों तक कड़ी यातनाएं देने के बाद अपनी बहन होलिका को आदेश दिया था कि वह आग में प्रहलाद को लेकर बैठ जाएं. बता दें होलिका को आग में ना जलने का वरदान प्राप्त था, लेकिन आग में बैठते ही होलिका जलकर राख हो गई और प्रहलाद को एक खरोंच भी नहीं आई.

होलिका दहन 2022 कब है
हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जाता है. इस बार होलिका दहन 17 मार्च 2022, गुरुवार को है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार होलिका दहन पूर्णिमा तिथि में भद्रा रहित काल में करना चाहिए. ध्यान रहे यदि प्रदोष काल में भद्रा हो और निशीथ काल से पहले भद्रा समाप्त हो रही हो, तब भद्रा के समाप्त होने पर निशीथ काल से पहले होलिका दहन कर लेना चाहिए. ऐसे में इस बार होलिका दहन 18 मार्च 2022 को रात 12:57 के बाद करें.

होलिका दहन 2022 तिथि और शुभ मुहूर्त
होलिका दहन 2022 – 17 मार्च 2022, गुरुवार
होलिका दहन शुभ मुहूर्त – 17 मार्च 2022, रात्रि 12:57 के बाद
भद्रा मुख – 17 मार्च को रात 1 बजकर 20 मिनट से
भद्रा मुख की समाप्ति – 18 मार्च को मध्य रात्रि 12 बजकर 57 मिनट तक

होलिका दहन पर बनेंगे ये तीन शुभ योग
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस बार गुरु ग्रह की दृष्टि संबंध चंद्रमा से होने के कारण गजकेसरी योग का निर्माण होने वाला है. इसके अलावा इस दिन वरिष्ठ और केदार योग भी बनने वाले हैं.

भद्रा काल में क्यों नहीं करना चाहिए होलिका दहन
शास्त्रों के अनुसार भद्रा काल में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित माना जाता है, क्योंकि भद्रा के स्वामी यमराज होते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार भद्रा भगवान सूर्यदेव की पुत्री और शनिदेव की बहन हैं, वह भी शनिदेव की तरह क्रोधित स्वभाव की हैं. कहा जाता है कि भद्रा तीनों लोक में भ्रमण करती हैं. इसलिए जब पृथ्वी लोक पर भद्रा विराजमान होती हैं तो शुभ कार्यों की मनाही होती है. पंडितों की मानें तो भद्रा की समाप्ति के साथ पूर्णिमा में होलिका दहन करना चाहिए. इसलिए ऊपर दिए बताए गए समय पर होलिका दहन करें.

होलिका पूजन व दहन विधि
होलाष्टक से ही लोग होलिका दहन की तैयारियां शुरू कर देते हैं. होलिका दहन से पहले इसकी पूजा का भी विधान है. इस दिन सभी कार्यों को करने के बाद स्नान कर लें, इसके बाद होलिका पूजन वाले स्थान पर पूर्व दिशा में मुख करके बैठ जाएं. तथा गाय के गोबर से भगवान प्रहलाद और होलिका की प्रतिमा बनाएं और जल, रोली, अक्षत, फल, फूल, कच्चा सूत, गुड़, साबूत हल्दी, मूंग, गुलाल, बताशे और गेहूं की हरी बालियां एकत्रित कर होलिका की पूजा करें. होलिका की पूजा करने के बाद इसकी परिक्रमा करें. इस दिन भगवान नरसिंह की पूजा अर्चना का भी विधान है.

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