भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी कहा जाता है. इसे अनंत चौदस भी कहते हैं. इस बार ये तिथि 1 सितंबर 2020, मंगलवार को पड़ रही है. अनंत चतुर्दशी को भगवान विष्णु को समर्पित किया जाता है, इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा की जाती है. वही इसी दिन गणेश उत्सव का समापन भी होता है. इसलिए इस तिथि का और भी महत्व माना गया है.
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार इस व्रत को करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है. माना जाता है कि जो मनुष्य इस व्रत को लगातार 14 वर्षों तक करता है उसे अंत में विष्णु लोक को प्राप्त होता है. इस व्रत में भगवान विष्णु के अनंत अवतारों की पूजा की जाती है, इसलिए यह व्रत अनेकों गुना अधिक फलदायक माना गया है.
माना जाता है कि इस दिन सबसे पहले पांडवो नें व्रत किया था. जब महाभारत के युद्ध से पहले पांडवों ने जुआ खेला था, तब उनका सारा धन नष्ट हो गया. तब उन्होंने भगवान कृष्ण से प्रार्थना करते हुए उपाय पूछा, तब श्रीकृष्ण जी ने कहा की जुआ खेलने के कारण लक्ष्मी तुमसे रुठ गई हैं. अनंत चतुर्दशी के दिन आपको भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए. तभी से यह व्रत किया जाता है. इस व्रत को करने से लक्ष्मी जी भी प्रसन्न होती हैं.
अनंत चतुर्दशी 2020 के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त
अनंत चतुर्दशी पूजा मुहूर्त : 05:59:16 से 09:40:54 तक
अवधि : 03 घंटे 41 मिनट
अनंत चतुर्दशी: व्रत व पूजा की विधि
पंडित शर्मा के अनुसार इस दिन व्रत व पूजा विधि के तहत अनंत चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें. फिर किसी लकड़ी के पट्टे पर कलश स्थापित करें. इसके बाद कलश पर भगवान विष्णु की तस्वीर भी रखें. एक सूती धागे को कुमकुम, केसर और हल्दी से रंगें और अनंत सूत्र बनाएं इस सूत्र में चौदह गांठें लगाएं. इस सूत्र को भगवान विष्णु के समक्ष रख दें, अब विधिवत् भगवान विष्णु और अनंत सूत्र की पूजा करें.
वहीं अग्नि पुराण में अनंत चतुर्दशी व्रत के महत्व का वर्णन मिलता है. इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा करने का विधान है. यह पूजा दोपहर के समय की जाती है. इस व्रत की पूजन विधि इस प्रकार है-
1. इस दिन प्रातःकाल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें और पूजा स्थल पर कलश स्थापना करें.
2. कलश पर अष्टदल कमल की तरह बने बर्तन में कुश से निर्मित अनंत की स्थापना करें या आप चाहें तो भगवान विष्णु की तस्वीर भी लगा सकते हैं.
3. इसके बाद एक धागे को कुमकुम, केसर और हल्दी से रंगकर अनंत सूत्र तैयार करें, इसमें चौदह गांठें लगी होनी चाहिए. इसे भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने रखें.
4. अब भगवान विष्णु और अनंत सूत्र की षोडशोपचार विधि से पूजा शुरू करें और मंत्र का जाप करें. पूजन के बाद अनंत सूत्र को बाजू में बांध लें.
मंत्र : अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव.
अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते..
5. पुरुष अनंत सूत्र को दांये हाथ में और महिलाएं बांये हाथ में बांधे. इसके बाद ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए और सपरिवार प्रसाद ग्रहण करना चाहिए.
अनंत चतुर्दशी: अनंत फल देने वाला व्रत
पौराणिक मान्यता के अनुसार महाभारत काल से अनंत चतुर्दशी व्रत की शुरुआत हुई. यह भगवान विष्णु का दिन माना जाता है. अनंत भगवान ने सृष्टि के आरंभ में चौदह लोकों तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुवः, स्वः, जन, तप, सत्य, मह की रचना की थी. इन लोकों का पालन और रक्षा करने के लिए वह स्वयं भी चौदह रूपों में प्रकट हुए थे, जिससे वे अनंत प्रतीत होने लगे. इसलिए अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और अनंत फल देने वाला माना गया है.
मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ यदि कोई व्यक्ति श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करता है, तो उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण होती है. धन-धान्य, सुख-संपदा और संतान आदि की कामना से यह व्रत किया जाता है. भारत के कई राज्यों में इस व्रत का प्रचलन है. इस दिन भगवान विष्णु की लोक कथाएं सुनी जाती है.
अनंत चतुर्दशी की कथा
महाभारत की कथा के अनुसार कौरवों ने छल से जुए में पांडवों को हरा दिया था. इसके बाद पांडवों को अपना राजपाट त्याग कर वनवास जाना पड़ा. इस दौरान पांडवों ने बहुत कष्ट उठाए. एक दिन भगवान श्री कृष्ण पांडवों से मिलने वन पधारे. भगवान श्री कृष्ण को देखकर युधिष्ठिर ने कहा कि, हे मधुसूदन हमें इस पीड़ा से निकलने का और दोबारा राजपाट प्राप्त करने का उपाय बताएं. युधिष्ठिर की बात सुनकर भगवान ने कहा आप सभी भाई पत्नी समेत भाद्र शुक्ल चतुर्दशी का व्रत रखें और अनंत भगवान की पूजा करें.
इस पर युधिष्ठिर ने पूछा कि, अनंत भगवान कौन हैं? इनके बारे में हमें बताएं. इसके उत्तर में श्री कृष्ण ने कहा कि यह भगवान विष्णु के ही रूप हैं. चतुर्मास में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर अनंत शयन में रहते हैं. अनंत भगवान ने ही वामन अवतार में दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया था. इनके ना तो आदि का पता है न अंत का इसलिए भी यह अनंत कहलाते हैं अत: इनके पूजन से आपके सभी कष्ट समाप्त हो जाएंगे. इसके बाद युधिष्ठिर ने परिवार सहित यह व्रत किया और पुन: उन्हें हस्तिनापुर का राज-पाट मिला.