आज देश ने अपना महान एथलीट खो दिया है. शनिवार सुबह जब ‘फ्लाइंग’ सिख मिल्खा सिंह के निधन का समाचार मिला तो पूरा देश शोक में डूब गया. कोरोना ने एक और देश को बड़ी क्षति पहुंचाई. 91 साल की आयु में भी महान एथलीट मिल्खा देशवासियों को ‘जवां’ रखने का संदेश देते रहे.
जिंदगी की आखिरी सांस तक वही जोश नजर आता था जो उनके जवानी के दिनों में था. ‘दौड़ का नाम ही मिल्खा सिंह था’. देश में उनका बड़े सम्मान के साथ नाम लिया जाता था.
पिछले वर्ष उन्होंने कहा था कि मैं 90 साल का हो गया हूं, दिल में बस एक ही ख्वाहिश है कोई देश के लिए गोल्ड मेडल एथलेटिक्स में जीते. ओलंपिक में तिरंगा लहराए, नेशनल एंथम बजे. बता दें कि दुनिया में भारत का नाम करने वाले एथलीट मिल्खा सिंह का शुक्रवार देर रात निधन हो गया.
कोरोना से जूझने के बाद फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह जिंदगी की जंग हार गए हैं. इसी हफ्ते उनकी पत्नी निर्मल मिल्खा सिंह का देहांत भी कोरोना की वजह से हो गया था.
बीते दिनों ही मिल्खा सिंह कोरोना निगेटिव हुए थे, लेकिन अचानक से उनकी तबीयत नाजुक होने लगी इसके बाद उन्हें चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल में भर्ती किया गया था. उनका फिटनेस के प्रति जुनून कम नहीं हुआ था. उनके लिए फिटनेस क्या मायने रखती थी, इसे उन्होंने एक कार्यक्रम के दौरान साझा किया था.
उन्होंने कहा था कि बदलाव फिटनेस से ही आएगा. मैं जो चल-फिर पा रहा हूं, वह केवल फिजिकल फिटनेस की वजह से ही हो पाया है. सही मायने में पूरे जीवन भर वे अनुशासित रहे. वे लाखों करोड़ों युवाओं के लिए आदर्श थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके निधन पर दुख व्यक्त करते हुए कहा है कि हमने एक महान खिलाड़ी खो दिया है.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी ट्वीट कर मिल्खा सिंह के निधन पर शोक प्रकट किया है. उन्होंने लिखा है कि मिल्खा सिंह एक बेहतरीन एथलीट और स्पोर्टिंग लेजेंड थे. उन्होंने अपनी उपलब्धियों से देश को गौरवंतित महसूस कराया था. वह एक शानदार व्यक्ति थे, अपनी अंतिम सांस तक उन्होंने खेल के क्षेत्र में अपना योगदान दिया.
मिल्खा सिंह भारत के खेल इतिहास के सबसे सफल एथलीट थे. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक सब मिल्खा सिंह के मुरीद थे.
20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा (जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है) के एक सिख परिवार में मिल्खा सिंह का जन्म हुआ था. खेल और देश से बहुत लगाव था, इस वजह से विभाजन के बाद भारत भाग आए और भारतीय सेना में शामिल हुए थे. मिल्खा सिंह का बचपन बहुत कठिनाइयों से गुजरा और भारत के विभाजन के बाद हुए दंगों में मिल्खा सिंह ने अपने माता-पिता और कई भाई-बहनों को खो दिया था. मिल्खा सिंह को बचपन से दौड़ने का शौक था.
पाक के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने मिल्खा सिंह को दिया था फ्लाइंग सिख का नाम
1956 में मेलबर्न में आयोजित ओलिंपिक खेल में भाग लिया. कुछ खास नहीं कर पाए, लेकिन आगे की स्पर्धाओं के रास्ते खोल दिए. 1958 में कटक में आयोजित नेशनल गेम्स में 200 और 400 मीटर में कई रिकॉर्ड बनाए. इसी साल टोक्यो में आयोजित एशियाई खेलों में 200 मीटर, 400 मीटर की स्पर्धाओं और राष्ट्रमंडल में 400 मीटर की रेस में स्वर्ण पदक जीते.
उनकी सफलता को देखते हुए, भारत सरकार ने ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया. महान एथलीट के नाम पर फिल्म भी बनी है जिसका नाम था ‘भाग मिल्खा भाग’ . आजाद भारत में मिल्खा सिंह स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय बने. 1960 के रोम ओलिंपिक में मिल्खा पदक से चूक गए थे. इस हार का उनके मन में जिंदगी के आखिरी समय तक ‘मलाल’ रहा . इसके बाद साल 1960 में ही उन्हें पाकिस्तान के इंटरनेशनल एथलीट प्रतियोगिता में न्योता मिला.
मिल्खा के मन में बंटवारे का दर्द था. वह पाकिस्तान जाना नहीं चाहते थे. हालांकि बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के समझाने पर उन्होंने पाकिस्तान जाने का फैसला किया. पाकिस्तान में उस समय अब्दुल खालिक का जोर था. खालिक वहां के सबसे तेज धावक थे. दोनों के बीच दौड़ हुई. मिल्खा ने खालिक को हरा दिया. पूरा स्टेडियम अपने हीरो का जोश बढ़ा रहा था लेकिन मिल्खा की रफ्तार के सामने खालिक टिक नहीं पाए.
मिल्खा की जीत के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने ‘फ्लाइंग सिख’ का नाम दिया. अब्दुल खालिक को हराने के बाद अयूब खान मिल्खा सिंह से कहा था, ‘आज तुम दौड़े नहीं उड़े हो. इसलिए हम तुम्हें फ्लाइंग सिख का खिताब देते हैं.’ इसके बाद ही मिल्खा सिंह को ‘द फ्लाइंग सिख’ कहा जाने लगा. अलविदा महान एथलीट मिल्खा सिंह .
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार